यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
चतुर्थ अध्याय
इस अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने मुख्य रूप से यज्ञ का स्वरूप स्पष्ट किया और बताया कि यज्ञ जिससे पूरा होता है, उसे करने (कार्य-प्रणाली) का नाम कर्म है। कर्म को भली प्रकार इसी अध्याय में स्पष्ट किया, अतः-
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्यविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘यज्ञकर्मस्पष्टीकरणम्’ नाम चतुर्थोऽध्यायः।।4।।
इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में ‘यज्ञकर्म-स्पष्टीकरण’ नामक चौथा अध्याय पूर्ण होता है।
इति श्रीमत्परमहंसपरमानन्दस्य शिष्य स्वामीअड़गड़ानन्दकृते श्रीमद्भगवद्गीतायाः ‘यथार्थगीता’ भाष्ये ‘यज्ञकर्मस्पष्टीकरणम्’ नाम चतुर्थोऽध्यायः।।4।।
इस प्रकार श्रीमत् परमहंस परमानन्द जी के शिष्य स्वामी अड़गड़ानन्दकृत ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ में ‘यज्ञकर्म-स्पष्टीकरण’ नामक चौथा अध्याय पूर्ण होता है।
|