विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्। कुरुश्रेष्ठ अर्जुन! ‘यज्ञशिष्टामृतभुजो’- यज्ञ जिसकी सृष्टि करता है, जिसे अवशेष छोड़ता है, वह है अमृत। उसकी प्रत्यक्ष जानकारी ज्ञान है। उस ज्ञानामृत को भोगने अर्थात् प्राप्त करने वाले योेगीजन ‘यान्ति ब्रह्म सनातनम्’-शाश्वत सनातन परब्रह्म को प्राप्त होते हैं। यज्ञ कोई ऐसी वस्तु है, जो पूर्ण होते ही सनातन परब्रह्म में प्रवेश दिला देती है। यज्ञ न करें तो आपत्ति क्या है? श्रीकृष्ण कहते हैं कि यज्ञरहित पुरुष को पुनः यह मनुष्यलोक अर्थात् मानव शरीर भी सुलभ नहीं होता, फिर अन्य लोक कैसे सुखदायी होंगे? उसके लिये तो तिर्यक् योनियाँ सुरक्षित हैं, इससे अधिक कुछ नहीं। अतः यज्ञ करना मनुष्य मात्र के लिये नितान्त आवश्यक है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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