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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
4. मानव शरीर का सदुपयोग
जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ सन्त-महात्माओं के संग से बहुत विलक्षण एवं ठोस लाभ होता है। प्रेमी भक्त के विषय में आया है- वाग् गद्गदा द्रवते यस्य चित्तं- ‘जिसकी वाणी मेरे नाम, गुण और लीला का वर्णन करती-करती गद्गद हो जाती है, जिसका चित्त मेरे रूप, गुण, प्रभाव और लीलाओं को याद करते-करते द्रवित हो जाता है, जो बार-बार रोता रहता है, कभी-कभी हँसने लग जाता है, कभी लज्जा छोड़कर ऊँचे स्वर से गाने लगता है, तो कभी नाचने लग जाता है, ऐसा मेरा भक्त सारे संसार को पवित्र कर देता है।’ यः सेवते मासगुणं गुणात्परं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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