मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 14

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

3. अभेद और अभिन्नता

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मानव मात्र का कल्याण करने के लिये तीन योग हैं- कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग। यद्यपि तीनों ही योग कल्याण करने वाले हैं, तथापि इनमें एक सूक्ष्म भेद है कि कर्मयोग तथा ज्ञानयोग- दोनों साधन हैं और भक्तियोग साध्य है। भक्तियोग सब योगों का अन्तिम फल है। कर्मयोग तथा ज्ञानयोग- दोनों लौकिक निष्ठाएँ हैं, पर भक्तियोग अलौकिक निष्ठा हैं। शरीर और शरीरी- दोनों हमारे जानने में आते हैं, इसलिये ये दोनों ही लौकिक हैं। परन्तु परमात्मा हमारे जानने में नहीं आते, प्रत्युत केवल मानने में आते हैं, इसलिये वे अलौकिक हैं। शरीर को लेकर कर्मयोग, शरीरी को लेकर ज्ञानयोग और परमात्मा को लेकर भक्तियोग चलता है। कर्मयोग भौतिक साधना है, ज्ञानयोग आध्यात्मिक साधना है और भक्तियोग आस्तिक साधना है।

गीता ने कर्मयोग और ज्ञानयोग- दोनों का समकक्ष बताया है- ‘लोकेऽस्मिनिद्विधा निष्ठा’।[1]कर्मयोग और ज्ञानयोग- दोनों से एक ही तत्त्व की प्राप्ति होती है- ‘एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विंदते फलम्’[2], ‘यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते’।[3]साधक चाहे कर्मयोग से चले, चाहे ज्ञानयोग से चले, दोनों का एक ही फल होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 3/3
  2. गीता 5/4
  3. गीता 5/5

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