मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 29

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

4. मानव शरीर का सदुपयोग

Prev.png

परन्तु सत्संग करते-करते वह क्रोध कम होता है, थोड़ी-सी बात में नहीं आता, जोर से नहीं आता और कम देर ठहरता है। जब छोटी-छोटी कई बातें इकट्ठी हो जाती हैं, तब सहसा किसी बात पर जोर से क्रोध का भभका आता है। परन्तु सत्संग करते-करते वह भी मिट जाता है। क्रोध का स्वरूप है कि जिस पर क्रोध आता है, उसका अनिष्ट चाहता है। सत्संग करते-करते किसी का अनिष्ट करने की चाहना मिट जाती है।

सत्संग करने वाले को कभी क्रोध आ जाय तो उसमें होश रहता है और वह नरक देने वाला नहीं होता। काम, क्रोध और लोभ- ये तीनों नरकों के दरवाजे हैं।[1] इनमें फँसे हुए मनुष्य सीधे नरकों में जाते हैं। उनको नरकों में जाने से कोई अटकाने वाला नहीं है। परन्तु सत्संग करने वालों में काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दोष कम हो जाते हैं। वह काम-क्रोधादि के वशीभूत नहीं होता। वह अन्यायपूर्वक, झूठ, कपट, जालसाजी, बेईमानी से धन इकठ्ठा नहीं करता। वह उतना ही लेता है, जितने पर उसका हक लगता है। पराये हक की चीज नहीं लेता। काम-क्रोधादि के वशीभूत होने से अन्याय-मार्ग में प्रवेश हो जाता है, जिसके फलस्वरूप नरकों की प्राप्ति होती है। परन्तु सत्संग करने से ये काम-क्रोधादि दोष क्रमशः पत्थर, बालू, जल और आकाश की लकीर की तरह कम होते-होते मिट जाते हैं। पत्थर पर जो लकीर पड़ जाती है, वह कभी मिटती नहीं। बालू की लकीर जब हवा चलती है, तब बालू से ढककर मिट जाती है। जल पर लकीर खिंचती हुई तो दीखती है, पर जल पर लकीर बनती नहीं। परन्तु आकाश में लकीर खींचें तो केवल अँगुली ही दिखती है, लकीर बनती ही नहीं। इस प्रकार जब काम-क्रोधादि दोष किंचिन्मात्र भी नहीं रहते, तब बन्धन मिट जाता है और परमात्मा में स्थिति हो जाती है।

इस प्रकार सत्संग करने से दोष कम होते हैं। अगर दोष कम नहीं होते तो असली सत्संग नहीं मिला है। भगवान् की कथा तो किसी से भी सुनें, सुनने से लाभ होता है। अगर कथा कहने वाला प्रेमी भक्त हो तो बहुत विलक्षणता आती है। परन्तु तात्त्विक विवेचन जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ महापुरुष से सुनने पर ही लाभ होता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन:। काम क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत (गीता 16।21)

संबंधित लेख

मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः