शान्तनु गंगा से विवाह के बाद बहुत प्रसन्न रहते है। कुछ समय बाद गंगा अपने गर्भ से आठ वसुओं को जन्म देती है और एक-एक कर सभी को नदी में डूबो देती है परन्तु जब वे आठवें पुत्र को नदी में डूबोने जाती है। तभी शान्तनु उससे कहते है, कि तुम कैसी माँ हो? अपने पुत्रों की निर्मम हत्या क्यों कर रही हो? मैं तुमको अब ऐसा नही करने दुगाँ। ऐसा कहते ही गंगा उस आठवें पुत्र को शान्तनु को देकर शर्त के अनुसार वहाँ से विदा लेती है। जिसका उल्लेख महाभारत आदिपर्व के ‘सम्भव पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 98 में निम्न प्रकार से हुआ है।[1]
विषय सूची
शान्तनु का गंगा से पुत्रों की हत्या का कारण पुछना
तदनन्तर जब आठवां पुत्र उत्पन्न हुआ, तब हंसती हुई-सी अपनी स्त्री से राजा ने अपने पुत्र का प्राण बचाने की इच्छा से दु:खातुर होकर कहा-‘अरी! इस बालक का वध न कर, तू किसकी कन्या है? कौन है? क्यों अपने ही बेटों को मारे डालती है। पुत्रघातिनि! तुझे पुत्र हत्या का यह अत्यन्त निन्दित और भारी पाप लगा है’। स्त्री बोली- पुत्र की इच्छा रखने वाले नरेश! तुम पुत्रवानों में हो। मैं तुम्हारे इस पुत्र को नहीं मारुंगी; परंतु यहाँ मेरे रहने का समय अब समाप्त हो गया; जैसी कि पहले ही शर्त हो चुकी है। मैं जह्रु की पुत्री और महर्षिं द्वारा सेवित गंगा हूँ। देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये तुम्हारे साथ रह रही थी। ये तुम्हारे आठ पुत्र महा तेजस्वी महाभाग वसु देवता हैं। वसिष्ठजी के शाप-दोष से ये मनुष्य-योनि में आये थे। तुम्हारे सिवा दूसरा कोई राजा इस पृथ्वी पर ऐसा नहीं था, जो उन वसुओं का जनक हो सके। इसी प्रकार इस जगत् में मेरी-जैसी दूसरी कोई मानवी नहीं हैं, जो उन्हें गर्भ में धारण कर सके। अत: इन वसुओं की जननी होने के लिये मैं मानव शरीर धारण करके आयी थी। राजन्! तुमने आठ वसुओं को जन्म देकर अक्षय लोक जीत लिये हैं। वसु देवताओं की यह शर्त थी और मैंने उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा का ली थी कि जो-जो वसु जन्म लेगा, उसे मैं जन्मते ही मनुष्य–योनि से छुटकारा दिला दूंगी। इसलिये अब वे वसु महात्मा आपव (वसिष्ठ) के शाप से मुक्त हो चुके हैं। तुम्हारा कल्याण हो, जब मैं जाऊंगी। तुम इस महान् व्रतधारी पुत्र का पालन करो। यह तुम्हारा पुत्र सब वसुओं के पराक्रम से सम्पन्न होकर अपने कुल का आनन्द बढ़ाने के लिये प्रकट हुआ है। इसमें संदेह नहीं कि यह बालक बल और पराक्रम में दूसरे सब लोगों से बढ़कर होगा। यह बालक वसुओं में से प्रत्येक के एक-एक अंश का आश्रय है- सम्पूर्ण वसुओं के अंश से इसकी उत्पत्ति हुई है, मैंने तुम्हारे लिये वसुओं के समीप प्रार्थना की थी कि ‘राजा का एक पुत्र जीवित रहे’। इसे मेरा बालक समझना और इसका नाम ‘गंगादत्त’ रखना।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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| अर्जुन को ब्रह्मशिर अस्त्र की प्राप्ति
| राजकुमारों का रंगभूमि में अस्त्र-कौशल दिखाना
| भीम, दुर्योधन और अर्जुन द्वारा अस्त्र-कौशल का प्रदर्शन
| कर्ण का रंगभूमि में प्रवेश तथा राज्याभिषेक
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| अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना
| द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त करना
| युधिष्ठिर का युवराज पद पर अभिषेक
| पाण्डवों के शौर्य, कीर्ति और बल के विस्तार से धृतराष्ट्र को चिन्ता
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जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता
| दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव
| धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा
| दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना
| पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश
| वारणावत में पाण्डवों का स्वागत
| लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत
| विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण
| लाक्षागृह का दाह
| विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना
| हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश
| कुन्ती के लिए भीम का जल लाना
| माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना
| भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध
| हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना
| भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध
| युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना
| हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना
| भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन
| घटोत्कच की उत्पत्ति
| पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत
| ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार
| ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना
| ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन
| कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना
| कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना
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| भीम और वकासुर का युद्ध
| वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना
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| अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता
| राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना
| तपती और संवरण की बातचीत
| वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति
| गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना
| वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव
| शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना
| कल्माषपाद का शाप से उद्धार
| वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति
| शक्ति पुत्र पराशर का जन्म
| पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण
| और्व और पितरों की बातचीत
| पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति
| कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप
| पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
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पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत
| ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना
| स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा
| धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना
| राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना
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| भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा
| कृष्ण-बलराम का वार्तालाप
| अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय
| द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना
| कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत
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| द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन
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| व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना
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