भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 98

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भागवत धर्म मीमांसा

3. माया-संतरण

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(4.9) श्रद्धां भागवते शास्त्रेऽनिंदामन्यत्र चापि हि।
मनो-वाक्-कर्म-दंडं च सत्यं शम-दमावपि॥[1]

श्रद्धां भागवते शास्त्रे- हम जो भागवत शास्त्र पढ़ रहे हैं, उस पर श्रद्धा होनी चाहिए। शास्त्र पर श्रद्धा न हो तो शास्त्र में जो लिखा होगा, उसका क्या असर होगा? इसलिए शास्त्र पर श्रद्धा आवश्यक है।


इतना कहने के बाद एकदम एक बहुत बड़ी बात कह दी : अनिन्दाम् अन्यत्र चापि हि- दूसरे शास्त्रों की निंदा नहीं होनी चाहिए। वे जानते हैं कि भागवत के अलावा दूसरे बहुत से भी ग्रंथ दुनिया में चलते हैं। ‘बाइबिल’ है, ‘कुरान’ है, ‘ग्रंथसाहब’ है, ‘धम्मपद’ भी है। अनेक अच्छे-अच्छे ग्रंथ हैं, भागवत ग्रंथ का लेखक खुद ही लिख रहा है। वह समझा रहा है कि भागवतों के लिए, वैष्णवों के लिए भागवत श्रद्धेय ग्रंथ है। उस पर श्रद्धा होनी चाहिए, लेकिन दूरे ग्रंथों की निंदा नहीं होनी चाहिए।


यह उदारता एक बहुत बड़ी चीज है। इन दिनों छोटे-छोटे पंथ बन गये हैं। वे अपने-अपने ग्रंथ के आधार पर खड़े रहते हैं और दूसरे ग्रंथों की निंदा करते हैं। वे कहते हैं कि हमारे धर्म का, हमारे ग्रंथ का आश्रय लिए बिना मुक्ति नहीं मिलेगी। पर भागवत-धर्म ऐसी बात नहीं कहता। वह कहता है कि भागवत शास्त्र पर श्रद्धा रखें, किंतु दूसरे जो शास्त्र है, उनकी निंदा न करें। भागवत ऐसी दृष्टि रखती है। बड़ा ही सुंदर वाक्य है : श्रद्धां भागवते शास्त्रे अनिंदा अन्यत्र चापि हि। अन्यत्र यानि भिन्न-भिन्न शास्त्रों में जो अच्छे गुण हैं, वे भी लें। अपने-अपने शास्त्रों का आश्रय लें, उन पर अच्छी तरह अमल करें, लेकिन दूसरे शास्त्रों की निंदा न करें।


मनो-वाक्-कर्म-दंडम्- मन, काया और वाणी का दंडन करना चाहिए, उन्हें काबू में रखना चाहिए।

सत्यं शम-दमावपि- इन्हीं के साथ सत्य, शम और दम भी चाहिए। ये भक्ति के कतिपय प्रमुख साधन बताये गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत-11.3.26

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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