भागवत धर्म मीमांसा2. भक्त लक्षण' जिसके मन में भिदा यानि भेद नहीं, वह उत्तम भक्त है। कौन सा भेद? 'यह मेरा, यह दूसरे का' इस तरह का भेद और ‘यह मेरा धन, वह दूसरे का धन’ यह भेद। इस तरह का भेद भक्त के मन में नहीं रहता। यहाँ भी यही सुझाया है कि आर्थिक विषमता और सामाजिक विषमता मिटनी चाहिए। आर्थिक और सामाजिक आज़ादी की बात भूदान-ग्रामदान में चलती है। मान लीजिए, आपके पास धन है। दूसरा व्यक्ति उसे चाहता है। वह यदि यह सिद्ध कर दे कि उस धन का आपकी अपेक्षा उसे अधिक उपयोग है, तो उसे तत्काल दे देना चाहिए। धनवान को समझना चाहिए कि ‘मैं अपनी संपत्ति का मालिक नहीं, ‘ट्रस्टी’ (थातीदार) हूँ।’ मैं आश्रम में था। मेरे पास एक बार एक भाई आए। कहने लगे कि ‘आश्रम में तो समय-समय पर घंटियाँ बजती हैं, आपको घड़ी की उतनी आवश्यकता नहीं, मैं घूमता रहता हूँ, मुझे उसकी आवश्यकता है, इसलिए घड़ी मुझे दीजिए।’ मैंने अपनी घड़ी तुरंत उनको दे दी। कुछ दिनों बाद दूसरे एक भाई ने मेरे पास घड़ी नहीं है, यह देख अपनी कलाई की घड़ी मुझे दे दी। दो-तीन दिनों बाद पहले भाई मुझसे मिलने के लिए आए। उन्होंने मेरे पास नयी घड़ी देखी तो बोलेः ‘आपको इस रिस्ट वॉच की क्या आवश्यकता? आप अपनी पुरानी घड़ी रख लीजिए और यह मुझे दे दीजिए। मुसाफिरों में रिस्ट वॉच सुविधाजनक रहेगी।’ मैंने रिस्ट वॉच उनको दे दी और पुरानी घड़ी रख ली। यह मिसाल मैंने इसलिए दी कि भागवत में जो बातें बतायी हैं, वे अव्यावहारिक नहीं है। भगवान कह रहे हैं कि जिसके मन में मिल्कियत की भावना नहीं रहेगी, जो कुछ है वह सबका है, यह भावना रहेगी, जो सब भूतों के विषय में समान व्यवहार करेगा और शांत होगा, वह उत्तम भक्त होगा। '(3.9) त्रिभुवन – विभव – हेतवे – ऽप्यकुंठ- ये सारे लक्षण हैं भगवान के श्रेष्ठ भक्त के, भगवद-भक्तश्रेष्ठ के, भक्तोत्त्म, भागवतोत्तम या वैष्णव-शिरोमणि के।
तीनों लोकों का आधिपत्य प्राप्त हो जाने पर भी इस वैष्णव-शिरोमणि की भगवत स्मृति कायम ही रहती है। प्रायः ऐसे समय स्मृति कायम नहीं रह पाती। इसीलिए कुंती ने वर मांगा था : |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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