भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 7

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2. भागवत-धर्म

5. भयं द्वितीयाभिनिवेशतः स्यात्
ईशादपेतस्य विपर्ययोऽस्मृतिः।
तन्माययाऽतो बुद्ध आभजेत् तं
भक्त्यैकयेशं गुरुदेवतात्मा।।
अर्थः
ईश्वर-विमुख को ईश्वर की माया के कारण विपरीत बुद्धि, विस्मृति, और फलस्वरूप द्वैतभाव उत्पन्न होकर भय होता है। इसलिए समझदार व्यक्ति गुरु में देवबुद्धि रखकर अनन्य भाव से ईश्वर की शरण जाय।
 
6. अविद्यामानोऽप्यवभाति हि द्वयो
ध्यातुर् धिया स्वप्नमनोरथौ यथा।
तत् कर्म-संकल्प-विकल्पकं मनो
बुधो निरुंध्यात् अभयं ततः स्यात्।।
अर्थः
मन में निरंतर ध्यान करने के कारण जिस तरह मानव कल्पना से स्वप्न और मनोरथ उत्पन्न करता है, उसी तरह वास्तव में अविद्यमान वस्तु भी द्वैत कल्पना के कारण उसे भासती है। इसलिए समझदार पुरुष कर्मों का संकल्प-विकल्प करने वाले मन का निरोध करे, तो वह निर्भय हो जाए।
 
7. शृण्वन् सुभद्राणि रथांगपाणेर्
जन्मानि कर्माणि च यानि लोके।
गीतानि नामानि तदर्थकानि
गायन् विलज्जो विचरेत् असंगः।।
अर्थः
इस लोक में उस चक्रपाणि ईश्वर की जो कुछ मंगलमय अवतार लीलाएँ हुई हैं, उनकी कथाएँ सुनें और लज्जा त्यागकर उसके चरित्र का गुणगान करने वाले नाम-गीत गाते हुए अनासक्त भाव से विचरण करें।
 
8. ऐवं-व्रतः स्व-प्रिय-नाम-कीर्त्या
जातानुरागो द्रुत-चित्त उच्चैः।
हसत्यथो रोदिति रौति गाय-
त्युन्मादवत् नृत्यति लोकबाह्य:।
अर्थः
ऐसा व्रत लेने वाले के हृदय में अपने प्रियतम प्रभु के नाम-संकीर्तन से प्रेम उत्पन्न होता है। उसका चित्त द्रवित हो उठता है और वह साधारण लोगों से निराला ही हो जाता है। वह मतवाला होकर कभी जोर से हँसता है, कभी रोता-चिल्लाता है, तो कभी नाचने-गाने लगता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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