भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 51

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19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति

 
10. श्रद्धाऽमृतकथायां मे शश्वन्मदनुकीर्तनम्।
परिनिष्ठा च पूजायां स्तुतिभिः स्तवनं मम॥
अर्थः
(जो मेरी भक्ति करना चाहता है, वह) मेरी अमृत-मधुर कथाओं में श्रद्धा रखे, निरंतर मेरा कीर्तन करे, मेरी पूजा के विषय में निष्ठा रखे और स्तोत्रों से मेरी स्तुति करे।
 
11. आदरः परिचर्यायां सर्वांगैर् अभिवंदनम्।
मदभक्त-पूजाऽम्यधिका सर्व-भूतेषु मन्मतिः॥
अर्थः
मेरी सेवा के विषय में आदर रखे, सर्वांगों से नमस्कार करे, मेरे भक्तों की विशेष पूजा करे, सब प्राणियों में मैं ही हूँ, ऐसी भावना करे।
 
12. मदर्येष्वंगचेष्टा च वचसा मद्गुणेरणम्।
मय्यर्पणं च मनसः सर्वकाम-विवर्जनम्।।
अर्थः
सभी कर्म और व्यवहार मेरे लिए ही करे, वाणी से मेरे ही गुणों का संकीर्तन करे, मन मुझमें लगाए और सब कामनाओं को त्याग दे।
 
13. ऐवं धर्मैर् मनुष्याणां उद्धवात्मनिवेदिनाम्।
मयि संजायते भक्तिः कोऽन्योऽर्थोऽस्यावशिष्यते॥
अर्थः
हे उद्धव! जो मेरे इन धर्मों का पालन करते और मुझे आत्मनिवेदन करते हैं, उनके हृदय में मेरी प्रेममयी भक्ति का उदय होता है। जिसे मेरी भक्ति प्राप्त हो गयी, उसे और कौन सी दूसरी वस्तु प्राप्त करना शेष रहता है?
 
14. यदाऽऽत्मन्यर्पितं चित्तं शांतं सत्त्वोपबृंहितम्।
धर्म ज्ञानं स-वैराग्यं ऐश्वर्यं चाभिपद्यते।।
अर्थः
जब सत्त्वगुण से विकसित और शांत चित्त परमेश्वर की ओर लग जाता है, उस समय साधक को धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य आदि प्राप्त होते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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