भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 45

Prev.png

16 गुण-विकास

 
9. दुःखं काम-सुखापेक्षा सुखं दुःख-सुखात्ययः।
मूर्खो देहाद्यहंबुद्धिः पंडितो बंध-मोक्ष-वित्॥
अर्थः
विषय-सुख की लालसा ही ‘दुःख’ है। सुख-दुःख से परे की स्थिति ‘सुख’ है। देहादि नश्वर वस्तु ही मैं हूँ, ऐसा मानने वाला मनुष्य ‘मूर्ख’ है। बंध क्या और मोक्ष क्या, यह जानने वाला पुरुष ‘पंडित’ है।
 
10. उत्पथश् चित्त-विक्षेपः पंथा मन्निगमः स्मृतः।
नरकस्तम-उन्नाहः स्वर्गः सत्त्वगुणोदयः॥
अर्थः
चित्त का विक्षेप गलत मार्ग है, कुमार्ग है। वह ‘उत्पथ’ यानि टेढ़ा रास्ता है। जिस मार्ग से जाने पर मेरी भेंट होती है, वह ‘सत्पथ’ है। तामस गुणों का उत्कर्ष ही ‘नरक’ और सात्त्विक गुणों का उत्कर्ष ‘स्वर्ग’ है।
 
11. दरिद्रो यस्त्वसंतुष्टो गुणाढ्यो ह्याढ्य उच्यते।
गुणेष्वसक्त-धीर् ईशो गुण-संगो विपर्ययः॥
अर्थः
जो सदा असंतुष्ट रहता है, वह ‘दरिद्र’ है। जो सद्गुणों से समृद्ध है, वह (‘आढ्य’ यानि) ‘श्रीमान्’ है। गुणों में जिसकी बुद्धि अनासक्त है, वह ‘प्रभु’ है और जो गुणों में उलझ जाता है, वह ‘गुलाम’ है।
 
12. किं वर्णितेन बहुना लक्षमं गुण-दोषयोः।
गुण-दोष-दृशिर् दोषो गुणस्तूभय-वर्जितः॥
अर्थः
अधिक क्या कहें? संक्षेप में गुण और दोष का लक्षण यह है कि पदार्थों के गुण-दोष देखना ‘दोष’ है और उन्हें न देखना ‘गुण’ है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः