भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 40

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14 भक्ति-पावनत्व

5. निष्किंचना मय्यनुरक्त चेतसः
शांता महांतोऽखिल-जीव-वत्सलाः।
कामैरनालब्ध-धियो जुषन्ति यत्
तन्नैरपेक्ष्यं न विदुः सुखं मम॥
अर्थः
किसी भी उपाधि अर्थात संग्रह से रहित, मुझमें अनुरक्त-चित्त, शांत, विशाल हृदय, सब प्राणियों पर प्रेम करने वाले, किसी भी प्रकार की वासना से अस्पृष्ट-बुद्धि मेरे भक्त जिस निरपेक्ष सुख का अनुभव करते हैं, वह दूसरों की समझ में नहीं आ सकता।
 
6. बाध्यमानोऽपि मद्भक्तो विषयैरजितेंद्रियः।
प्रायः प्रगल्भया भक्त्या विषयैर् नाभिभूयते॥
अर्थः
मेरा जो भक्त इंद्रियों पर विजय नहीं पा सका है और इसी कारण विषय जिसे बार-बार परेशान करते हैं, (उसकी) मुझमें दृढ़ भक्ति होने पर साधारणत: विषय उसे नहीं सताते।
 
7. भक्त्याहमेकया ग्राह्यः श्रद्धयाऽऽत्मा प्रियः सताम्।
भक्तिः पुनाति मन्निष्ठा श्वपाकानपि संभवात्॥
अर्थः
सज्जनों का अत्यंत प्रिय और उनकी एकमात्र आत्मा में केवल श्रद्धापूर्ण एकनिष्ठ भक्ति से ही वश होता हूँ। मेरी अनन्यभक्ति चांडालों को भी उनके हीन जन्म-कुल से पावन कर देती है।
 
8. कथ विना रोमहर्षं द्रवता चेतसा विना।
विनाऽऽनंदाश्रु-कलया शुद्धयेद् भक्त्या विनाऽऽशयः॥
अर्थः
जब तक शरीर पुलकित नहीं हो उठता, हृदय गद्गद नहीं हो जाता, नेत्रों से आनंदत के अश्रु छलकने नहीं लगते, भक्ति नहीं होती, तब तक (मलिन) हृदय शुद्ध कैसे होगा?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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