भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 23

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8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु

9. न देयं नोपभोग्यं च लुब्धैर् यद् दुःख-संचितम्।
भुंक्ते तदपि तच्चान्यो मधुहेवार्थविन्मधु॥
अर्थः
जिस प्रकार मधुमक्खियों द्वारा संचित मधु ( शहद ) मधु निकालने वाला चतुर मनुष्य बटोर ले जाता है, उसी प्रकार बड़े कष्ट से लोभी द्वारा संग्रहीत धन- जिसे वह न तो किसी को दे पाता है और न स्वयं ही भोग पाता है- दूसरा ही कोई हर ले जाता है।
 
10. यथोर्णनाभिर् हृदयात् ऊर्णां संतत्य वक्त्रतः।
तया विहृत्य भूयस् तां ग्रसत्येवं महेश्वरः॥
अर्थः
जिस तरह मकड़ी अपने हृदय से निकले ऊन ( तंतु ) को मुँह द्वारा फैलाकर उसका जाल बुनती है और कुछ देर उसी में विहार (खेल) कर पुनः उसे निगल जाती है, उसी तरह परमेश्वर भी करता है। (परमेश्वर सृष्टि उत्पन्न करता है, कुछ समय तक उसमें विहार कर पुनः उसे स्व-स्वरूप में लीन कर लेता है। ईश्वर किस तरह काम करता है, इसकी शिक्षा मकड़ी से मिलती है।)
 
11. यत्र यत्र मनो देही धारयेत् सकलं धिया।
स्नेहाद् द्वेषाद् भयाद् वापि याति तत्तत्सरूपताम्॥
अर्थः
देहधारी जीव प्रेम, द्वेष या भय से जिस-जिस वस्तु में बुद्धिपूर्वक अपना मन एकाग्र करता है, उन-उन पदार्थों से वह एकरूप हो जाता है।
 
12. कीटः पेशस्कृतं ध्यायन् कुड्यां तेन प्रवेशितः।
याति तत्सात्मतां राजन्! पूर्वरूपं असंत्यजन्॥
अर्थः

राजन! भृंगी द्वारा अपने घोंसले में बलात लाया हुआ कीट (भय से) उस भृंगी का ही ध्यान करता है। फलस्वरूप इसी देह में उसकी देह बदलकर उसे भृंगी का रूप प्राप्त हो जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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