भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 17

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6. आत्मोद्धार

5. श्रिया विभूत्याभिजनेन विद्यया
त्यागेन रूपेण बलेन कर्मणा।
जातस्मयेनांध-धियः सहेश्वरान्
सतोऽवमन्यन्ति हरिप्रियान् खलाः॥
अर्थः
संपत्ति, ऐश्वर्य, कुलीनता, विद्या, त्याग, रूप, बल और कर्म से गर्वित हो, जिनकी बुद्धि अंधी हो गयी है, वे दुष्ट लोग भगवान के प्रेमी भक्तों का और (स्वयं) ईश्वर का भी अपमान करते हैं।

6. क्षुत्-तृट्-त्रिकालगुण-मारुत-जैह्, व्य-शैश्न्यान्
अस्मान् अपारजलधीन् अतितीर्य केचित्।
क्रोधस्य यान्ति विफलस्य वशं, पदे गोर्
मज्जन्ति, दुश्चर-तपश्च वृथोत्सृजन्ति॥
अर्थः
भूख, प्यास, गर्मी, बरसात, हवा, आंधी-पानी, जिह्वा-सुख और रति-सुख जैसे दुस्तर समुद्रों को लाँघकर भी जो व्यर्थ ही क्रोध के अधीन होते हैं, वे मानो गाय के खुर से बनी क्षुद्र गड़ही में डूबते हैं और उनकी कठिन तपस्या व्यर्थ हो जाती है।
 
7. इंद्रियाणि जयन्त्याशु निराहारा मनीषिणः।
वर्जजयित्वा तु रसनं तन्निरन्नस्य वर्धते॥
अर्थः
विवेकी पुरुष यदि आहार रोक दे, तो रसनेंद्रिय (जिह्वा) को छोड़ अन्य इंद्रियों पर शीघ्र ही विजय पा सकते हैं। किंतु रसनेंद्रिय तो आहार त्यागने पर और भी अधिक बलवान होती है।
 
8. तावत् जितेंद्रियो न स्यात विजितान्येंद्रियः पुमान्।
न जयेद् रसनं यावत् जितं सर्व जिते रसे॥
 
अर्थः
जब तक रसनेंद्रिय जीती नहीं जाती, तब तक अन्य इंद्रियों को जीतने पर भी मनुष्य जितेंदिय नहीं होता। रसना के जीतने से ही सारी इंद्रियाँ जीत ली जाती हैं।
 
9. कृतादिषु प्रजा राजन्! कलौ इच्छन्ति संभवम्।
कलौ खलु भविष्यन्ति नारायण-परायणः॥
अर्थः
महाराज! कृत आदि युग के लोग कलियुग में जन्म लेना चाहते हैं, क्योंकि कलियुग में लोग सचमुच नारायण-परायण होने वाले हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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