भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 137

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भागवत धर्म मीमांसा

8. संसार-प्रवाह

(22.6) तस्मादुद्धव ! मा भुंक्ष्व विषयान् असदिंद्रियैः ।
आत्माग्रहण-निर्भातं पश्य वैकल्पिकं भ्रमम् ॥[1]

हे उद्धव! मा भुंक्ष्व विषयान् – तू (इन्द्रियों द्वारा) विषय-भोग में मत पड़े। ये इन्द्रियाँ असत हैं – असत्-इंद्रियैः। ये तुझे ठगेंगी। तू इनके वश में मत जा और पश्य – देख, वैकल्पिकं भ्रमम् – काल्पनिक, भ्रम, जो आत्माग्रहण-निर्भातम् – आत्मतत्त्व के अग्रहण के कारण भासित हो रहा है, क्या भासित होता है? कल्पना, विकल्पों का भ्रम।


यहाँ भगवान् ने उद्धव को आज्ञा की है। शास्त्र में आज्ञा या आदेश का बहुत महत्त्व माना जाता है। सारा बोध देने के बाद अन्त में भगवान आदेश दे रहे हैं : पश्य यानि देख! आत्मा के अग्रहण से भासित हुआ वैकल्पिक भ्रम है, यह देख।

समझने की बात है कि मन ही आया-जाया करता है। वह एक लोक से दूसरे लोक में जाता है और उसके पीछे-पीछे आत्मा भी जाता है। यह प्रतिक्षण होता रहता है। लेकिन काल-चक्र अत्यन्त वेग से चलायमान होने के कारण स्थिरता का भास होता है। नदी बह रही है, दीप जल रहा है, मनुष्य भी बदल रहा है। इसलिए अपने को परिवर्तनशील, बदलने वाली देह से अलग कर। यह कपड़ा फटने वाला है। इस फटने वाले कपड़े से अलग न होने के कारण ही मनुष्य स्पर्श-संमूढ़ होता है। इसलिए उद्धव! तू विषयों को छू मत!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत-11.22.56

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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