प्रेमवाटिका -रसखान पृ. 10

प्रेमवाटिका -रसखान

दोहा 46-50

Prev.png

जो जातें जामैं बहुरि, जा हित कहियत बेस।
सो सब प्रेमहिं प्रेम है, जग रसखान असेस।।46।।

कारज कारन रूप यह, प्रेम अहै रसखान।
कर्ता कर्म क्रिया करन, आपहि प्रेम बखान।।47।।

देखि गदर हित-साहिबी, दिल्‍ली नगर समान।
छिनहि बादसा-बंस की, ठसक छोरि रसखान।।48।।

प्रेम-निकेतन श्रीबनहि, आइ गोबर्धन धाम।
लह्यौ सरन चित चाहिकै, जुगल सरूप ललाम।।49।।

तोरि मानिनी तें हियो, फोरि मोहिनी-मान।
प्रेम देव की छविहि लखि, भए मियाँ रसखान।।50।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः