रसखान का रस संयोजन

रसखान का रस संयोजन
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पूरा नाम सैय्यद इब्राहीम (रसखान)
जन्म सन् 1533 से 1558 बीच (लगभग)
जन्म भूमि पिहानी, हरदोई ज़िला, उत्तर प्रदेश
कर्म भूमि महावन (मथुरा)
कर्म-क्षेत्र कृष्ण भक्ति काव्य
मुख्य रचनाएँ 'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका'
विषय सगुण कृष्णभक्ति
भाषा साधारण ब्रज भाषा
विशेष योगदान प्रकृति वर्णन, कृष्णभक्ति
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, "इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए" उनमें "रसखान" का नाम सर्वोपरि है।

हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृगांर रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं।

रस के भेद
कुछ आचार्यों ने श्रृंगार रस को रसराज और अन्य रसों की उसी से उत्पत्ति मानी है।

  • आचार्य मम्मट ने रसों की संख्या आठ मानी है-
  1. श्रृंगार
  2. हास्य
  3. करुण
  4. रौद्र
  5. वीर
  6. भयानक
  7. वीभत्स
  8. अद्भुत
  • अब विद्वानों ने भक्ति और वात्सल्य को भी रस मान लिया है।
  • रसखान के काव्य में 'श्रृंगार रस', 'भक्ति रस' तथा 'वात्सल्य रस' आदि का विवेचन मिलता है।
रसखान के दोहे महावन, मथुरा


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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