सवैया
फूलत फूल सवै बन बागन बोलत मौर बसंत के आवत।
कोयल की किलकारी सुनै सब कंत बिदेहन तें सब धावत।
ऐसे कठोर महा रसखान जु नेकुह मोरी ये पीर न पावत।
हक ही सालत है हिय में जब बैरिन कोयल कूक सुनावत।।232।।
रसखान सुनाह वियोग के ताप मलीन महा दुति देह तिया की।
पंकज सौ मुख गौ मुरझाय लगी लपटैं बरै स्वाँस हिया की।
ऐसे में आवत कान्ह सुने हुलसै सुतनी तरकी अंगिया की।
यों जन जोति उठी तन की उकसाय दई मनौ बाती दिया की।।233।।
बिरहा की जू आँच लगी तन में तब जाय परी जमुना जल में।
जब रेत फटी रु पताल गई तब सेस जर्यौ धरती-तल में।
रसखान तबै इहि आँच मिटे तब आय कै स्याम लगैं गल मैं।।234।।