सुजान-रसखान पृ. 29

सुजान-रसखान

बंक बिलोचन

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सवैया

मैन मनोहर नैन बड़े सखि सैननि ही मनु मेरो हर्यौ है।
गेह को काज तज्‍यौ रसखानि हिये ब्रजराजकुमार अर्यौ है।।
आसन-बासन सास के आसन पाने न सासन रंग पर्यौ है।
नैननि बंक बिसाल की जोहनि मत्त महा मन मत कर्यौ है।।66।।

भटू सुंदर स्‍याम सिरोमनि मोहन जोहन मैं चित्त चोरत है।
अबलोकन बंक बिलोचन मैं ब्रजबालन के दृग जोरत है।।
रसखानि महावत रूप सलोने को मारग तें मन मोरत है।
ग्रह काज समाज सबै कुल लाज लला ब्रजराज को तोरत है।।67।।

आली लाल घन सों अति सुंदर तैसो लसे पियरो उपरैना।
गंडनि पै छलकै छवि कुंडल मंडित कुंतल रूप की सैना।
दीरघ बंक बिलोकनि की अबलोकनि चोरति चित्त को चैना।
मो रसखानि रट्यौ चित्त री मुसकाइ कहे अधरामृत बैना।।68।।

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