सुजान-रसखान पृ. 32

सुजान-रसखान

मुस्‍कान माधुरी

Prev.png

सवैया

वा मुख की मुस्कान भटू अँखियानि तें नेकु टरै नहिं टारी।
जौ पलकैं पल लागति हैं पल ही पल माँझ पुकारैं पुकारी।
दूसरी ओर तें नेकु चितै इन नैनन नेम गह्यौ बजमारी।
प्रेम की बानि की जोग कलानि गही रसखानि बिचार बिचारी।।74।।

कातिग क्‍वार के प्रात सरोज किते बिकसात निहारे।
डीठि परे रतनागर के दरके बहु दामिड़ बिंब बिचारे।।
लाल सु जीव जिते रसखानि दरके गीत तोलनि मोलनि भारे।
राधिका श्रीमुरलीधर की मधुरी मुसकानि के ऊपर बारे।।75।।

बंक बिलोचन हैं दुख-मोचन दीरघ रोचन रंग भरे हैं।
घमत बारुनी पान कियें जिमि झूमत आनन रूप ढरै हैं।
गंडनि पै झलकै छबि कुंडल नागरि-नैन बिलोकि भरे हैं।
बालनि के रसखानि हरे मन ईषद हास के पानि परे हैं।।76।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः