सुजान-रसखान पृ. 54

सुजान-रसखान

कालिय दमन

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कवित्त

आपनो सो ढोटा हम सब ही को जानत हैं,
दोऊ प्रानी सब ही के काज नित धावहीं।
ते तौ रसखानि जब दूर तें तमासो देखैं,
तरनितनूजा के निकट नहिं आवहीं
आन दिन बात अनहितुन सों कहौं कहा,
हितू जेऊ आए ते ये लोचन रावहीं।
कहा कहौं आली ख़ाली देत सग ठाली पर,
मेरे बनमाली कों न काली तें छुरावहीं।।122।।

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