श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-11
विश्वरूप दर्शन योग
हे देव! अब आपकी वास्तविक महिमा मेरी समझ में पूरी तरह से आ गयी है। आप ही इस चराचर जगत् के जन्मस्थान हैं; आप ही हरि और हर इत्यादि समस्त देवताओं के परम देवता हैं। वेदों को भी आपसे ही ज्ञान प्राप्त हुआ है और आप ही आदि गुरु हैं। हे श्रीराम! आप भूतमात्र के साथ समान भाव से व्यवहार करते हैं। आप समस्त गुणों में अप्रतिम और अद्वितीय हैं। यह कहने की आवश्यकता ही क्या है कि आपके समान दूसरा कोई नहीं है। आप आकाश हैं और आपमें ही यह सारा संसार समाविष्ट है। ऐसी स्थिति में यह कहना सिर्फ लज्जा का विषय है कि आपकी ही भाँति और कोई सर्वव्यापी है। अब इस सम्बन्ध में और अधिक क्या कहा जाय! अत: त्रिभुवन में एकमात्र आप ही अद्वितीय हैं। आपकी समकक्षता का अथवा आपसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है। आपकी महिमा अलौकिक और अवर्णनीय है।”[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (561-566)
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