गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 97

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


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शान्तनु का सत्यवती से विवाहः-

गांगेय देवव्रत को युवराज बनाने के कुछ समय पश्चात् राजा शान्तनु ने एक दिन यमुना नदी के किनारे पर धीवर कन्या योजनगन्धा[1] को देखा और उसके पिता धीवरराज से सत्यवती का विवाह अपने साथ कर देने का अनुरोध किया। धीवरराज ने इस शर्त पर अपनी कन्या का विवाह करना स्वीकार किया कि उसकी कन्या की सन्तान ही शान्तनु के पश्चात् राजा बनेगी। देवव्रत गांगेय की मौजूदगी में शान्तनु इस शर्त को स्वीकार नहीं कर सकते थे, किन्तु देवव्रत भीष्म ने अपने पिता की मनोकामना को पूर्ण करने के लिये धीवरराज की शर्त को स्वीकार किया और आजन्म अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा कर सत्यवती का विवाह अपने पिता से करा दिया। देवव्रत की इस भीष्म प्रतिज्ञा व महान् त्याग से प्रसन्न होकर शान्तनु ने अपने पुत्र को इच्छा मृत्यु का वर दिया कि उसकी मृत्यु उसकी इच्छा पर निर्भर रहेगी।

शान्तनु से इस सत्यवती के गर्भ से चित्रांगद और विचित्रवीर्य नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुये। चित्रांगद युवावस्था में ही एक गन्धर्व द्वारा युद्ध में मारा जा चुका था अतः शान्तनु के पश्चात् हस्तिनापुर का राजा विचित्रवीर्य हुआ। अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण देवव्रत भीष्म कहलाने लगे और फिर इसी नाम से विख्यात हुए।

विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर के राज्य पर अभिषिक्त करने के पश्चात् भीष्म ने विचित्रवीर्य का विवाह करने के अभिप्राय से काशिराज की अम्बिका, अम्बालिका और अम्बा नाम की तीनों कन्याओं का हरण किया। अम्बा सबसे बड़ी कन्या थी, उसने पहले से ही सौरभ देश के राजा शल्य को मन से वरण कर लिया था, अतः अम्बा ने जब अपना यह संकल्प भीष्म को प्रगट किया तो भीष्म ने अम्बा को वापस भिजवा दिया और अम्बिका और अम्बालिका के साथ विचित्रवीर्य का विवाह करा दिया। विवाह के कुछ समय पश्चात् ही विचित्रवीर्य भयानक क्षयरोग से ग्रसित हो गया और बिना सन्तान उत्पन्न किये ही उसकी मृत्यु हो गयी।

कुरुवंश के इस प्रकार निःसन्तान रह जाने के कारण वंश की रक्षा के लिये सत्यवती और भीष्म की मन्त्रणा से द्वैपायन व्यास मुनि के नियोग से अम्बिका व अम्बालिका के सन्तान उत्पन्न कराई गई। अम्बिका के धृतराष्ट्र उत्पन्न हुआ और अम्बालिका के पाण्डु उत्पन्न हुआ। धृतराष्ट्र के दुर्योधनादिक पुत्र हुए और पाण्डु के युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन आदि पुत्र हुए। शान्तनु वंश में भीष्म सबसे बड़े थे। शान्तनु के पुत्र होने के कारण भीष्म दुर्योधनादिक कौरवों के तथा युधिष्ठिरादि पाण्डवों के पितामह थे। अतः ये भीष्म पितामह नाम से भी प्रख्यात हैं।

धृतराष्ट्र और पाण्डु का जन्म-

सन्तानोत्पत्ति किये बिना ही क्षयरोग के कारण विचित्रवीर्य की जब अकाल मृत्यु हो गई तब वंशरक्षा, राष्ट्र रक्षा व प्रजा का पालन करने वाला कोई भी नहीं रहा। अतः सत्यवती ने भीष्म की मन्त्रणा से द्वैपायन व्यास मुनि को बुलवाया और अम्बिका तथा अम्बालिका के क्षेत्र से नियोग द्वारा सन्तानोत्पत्ति करने का आग्रह किया। इस नियोग प्रबन्ध के अनुसार अम्बिका के जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम धृतराष्ट्र रक्खा गया। धृतराष्ट्र अन्धा पैदा होने के कारण जन्मान्ध था।

अम्बालिका के नियोग से जो सन्तान पैदा हुई उसका वर्ण पाण्डु के समान पीला था अतः उसका नाम “पाण्डु” रक्खा गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सत्यवती

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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