गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीतोपदेश के पश्चात् भागवत धर्म की स्थिति
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महाभारत के बाद से गौतम बुद्ध तथा मौर्यवंशी सम्राट अशोक तक भागवत धर्म की स्थितिः-

गीतोपदेश, अर्जुन को महाभारत युद्ध शुरू होने से पहिले भगवान कृष्ण द्वारा युद्धस्थल कुरुक्षेत्र में दिया गया था। इस उपदेश के पश्चात् युद्ध आरम्भ हो गया जो 18 दिन में समाप्त हो गया। इन 18 दिनों में समस्त शूरवीर, योद्धा मारे गये, भारत रक्षाहीन हो गया, कोई शक्तिशाली शासक या राजा ऐसा नहीं रहा जो देश को संगठित रूप से रखने में समर्थ हो।

परिणामस्वरूप भारत में अराजकता फैल गई, आन्तरिक गृह युद्ध होने लगे, विदेशी जातियों द्वारा बाहर से भयंकर आक्रमण होना आरम्भ हो गया। आन्तरिक अस्तव्यवस्तता तथा बाहरी आक्रमणों के कारण भारत की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक व्यवस्था बिल्कुल बिगड़ गई और सारे देश में अराजकता फैल गई। गीतोपदेश दीर्घकाल तक लीपिबद्ध न हो सका।

इस गीतोपदेश को केवल स्वयं भगवान कृष्ण, वेदव्यास मुनि, अर्जुन, संजय तथा अन्धे कौरवराज धृतराष्ट्र यह पाँच व्यक्ति ही जानते थे। लिपिबद्ध हुए बिना संसार इससे अनभिज्ञ था। अतः सर्व साधारण के अवलोकनार्थ व्यास मुनि ने इसे लिपिबद्ध किया, और इसके प्रचार के उपाय अध्याय 18 श्लोक 68 से 72 में बताए। इन उपायों के अनुसार वैशम्पायन ने महाभारत की कथा अर्जुन के प्रपौत्र तथा परीक्षित के पुत्र हस्तिनापुर के तत्कालीन राजा जनमेजय को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने को सर्वप्रथम सुनाया था।

इससे यह सिद्ध होता है, कि जनमेजय के समय तक अर्थात पाण्डवों की तीसरी पीढ़ी में गीतोपदेश लिपिबद्ध होकर महाभारत काव्य में सम्मिलित हो चुका था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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