गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 98

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


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विदुर जन्मः-

व्यास मुनि के समक्ष उनका तप तेज सहन न कर अम्बिका द्वारा आँख मूँद लेने के कारण धृतराष्ट्र तो अन्धा हुआ और अम्बालिका के भय से पीली पड़ जाने के कारण उसका पुत्र पाण्डु वर्ण का हुआ, अतः ये दोनों सन्तानें दोष-युक्त थीं। अतः अविकाल विशुद्ध तथा दोषरहित संतान उत्पन्न करने के हेतु सत्यवती ने अम्बालिका को व्यास मुनि के पास नियोगार्थ एक बार और जाने को कहा। अम्बालिका व्यास मुनि के तेज व पराक्रम से इतनी भयभीत हो चुकी थी कि उसका साहस व्यास मुनि के समक्ष जाने का नहीं होता था। अतः अम्बालिका ने इस बार अपनी दासी को अपने समान वेशभूषा से अलंकृत करके व्यास मुनि के पास भेज दिया। व्यास मुनि के नियोग से जो संतान इस दासी से उत्पन्न हुई उसका नाम “विदुर” रक्खा गया।

अणिमाँडव्य ऋषि के शाप के कारण “धर्मराज” ने महात्मा विदुर के रूप में दासी के गर्भ से यह जन्म लिया था। विदुर का विवाह “महीपाल देवक” की कन्या से हुआ था।

विदुर प्रकाण्ड पण्डित, वेदों के जानने वाले व नीतिशास्त्र के पूर्ण ज्ञाता थे। विदुर की विदुरनीति आज भी सर्वमान्य है।

कौरव वंशः-

धृतराष्ट्र की माता अम्बिका पाण्डु की माता अम्बालिका से बड़ी थी और धृतराष्ट्र का जन्म पाण्डु से पहले हुआ था इसलिए इन दोनों ही कारणों से बड़ा होने के कारण नियमानुसार अंधा होने पर भी धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर के राज्य पर अभिषिक्त किया गया।

धृतराष्ट्र का विवाह गान्धार देश के राजा सुबल की कन्या “गान्धारी” के साथ हुआ। इस गान्धारी का भाई ही द्यूत क्रीडा-दक्ष शकुनि था। गान्धारी के धृतराष्ट्र से कोई संतान नहीं हुई। गान्धारी के भी व्यास मुनि की कृपा से ही दुर्योधनादिक 100 पुत्र हुए जिनकी उत्पत्ति की कथा बड़ी ही विचित्र एवं अद्भुत रीति से महाभारत में वर्णित है।

महाभारत में ऐसा वर्णन है कि जिस समय दुर्योधन पैदा हुआ तो, पैदा होते ही वह गधे के समान बोलने लगा और बड़े भयंकर अपशकुन हुए। इन भयंकर अपशकुनों को देखकर भीष्म, विदुर आदि वयोवृद्ध व्यक्तियों ने कह दिया था कि दुर्योधन का जन्म कौरव वंश के लिये हितकर सिद्ध नहीं होगा।

दुर्योधन स्वभाव से क्रूर, अधर्मी, अन्यायी, अनाचारी, ईर्ष्यालु, घमण्डी एवं दुराचारी था और जो गुण व स्वभाव रजःतमोगुणी आसुरी वृत्ति वाले व्यक्ति में होने चाहिये वे समस्त गुण दुर्योधन में विद्यमान थे।

धृतराष्ट्र के एक वेश्या स्त्री से “युयुत्सु” नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था।

इस प्रकार धृतराष्ट्र के दुर्योधन, दुःशासन, विकर्ण आदि 100 पुत्र एवं एक कन्या तथा दासी पुत्र युयुत्सु आदि सब मिलाकर कौरव वंश कहलाता है। हस्तिनापुर कौरवों की राजधानी थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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