गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-7
ज्ञान-विज्ञान-योग
|
(1)
श्रीभगवान उचाव-
मय्यासक्तमना: पार्थ
योगं युञ्जन्मदाश्रय: ।
असंशयं समग्रं मांम्
यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥1॥
भगवान कृष्ण ने कहा-
लगाकर मुक्त में मन मेरे आश्रित हो
होगा योग-युक्त यदि संशय-हीन हो।
जानेगा यथा समग्रेव[1] मुझ को
सुन हे पार्थ! अब उस ही विधि को।।
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐश्वर्य व विभूतियों सहित पूर्ण रूप से।
संबंधित लेख
गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय
|
अध्याय का नाम
|
पृष्ठ संख्या
|
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज