गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 1016

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-18
मोक्ष-संन्यास-योग
Prev.png

(1)
अर्जुन उवाच-

सन्न्यासस्य महाबाहो
तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् ।
त्यागस्य च हृषीकेश
पृथक्केशिनिषूदन ॥

अर्जुन ने कहा-

हे महाबाहु! संन्यास के तत्त्व को
जानना चाहता अब मैं आप से।
इच्छुक हृषीकेश! हूँ जानने को
त्याग भी केशी-निषूदना[1] ! आपसे।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. केशी नाम के दैत्य का वध करने वाले। कृष्ण का विशेषण। केशी-वध की कथा इस प्रकार है। केशी मथुराधिय कंस का अनुचर था जो अपना रूप चाहे जैसा बना सकता था। कंस की आज्ञा से यह अश्व का रूप बनाकर वृन्दावन गया और अनेक गोपालों तथा गायों को मार डाला। भगवान कृष्ण ने इस अश्व-रूप-केशी को शासित किया और मार डाला।

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः