गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 406

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-4
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
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(5) श्रीकृष्णावतार

यदुवंश में देवमीढ नाम का धर्मज्ञ राजा था जिसके वसुदेव नाम का पुत्र था। इस वसुदेव का विवाह कंस के पिता उग्रसेन के छोटे भाई देवक की पुत्री देवकी के साथ हुआ था। अपनी इस चचेरी बहन देवकी को जब कंस विदा करने जा रहा था तो उस समय यह आकाशवाणी हुई कि - “जिस देवकी को कंस! तुम उत्साहपूर्वक पतिगृह पहुँचाने जा रहे हो, उसी के आठवें पुत्र द्वारा तुम्हारी मृत्यु होगी” जिसके परिणामस्वरूप बहन के प्रति कंस का प्रेम मृत्युभय के कारण घृणा में परिवर्तित हो गया और कंस देवकी का वध-करने पर उतारू हो गया। वसुदेव द्वारा यह प्रण करने पर कि जो सन्तान देवकी से उत्पन्न होगी उसे वह कंस के सुपुर्द कर देगा कंस ने देवकी को मारने का विचार तो छोड़ दिया किन्तु उसने वसुदेव और देवकी को बन्दी बनाकर कारागृह में डाल दिया।

द्वापर-युग में दैत्यों के आतंक से पृथ्वी पीड़ित हो गाय का रूप धारण कर ब्रह्मा के पास गई और कंस आदि दैत्यों के कुकर्मों का वृत्तान्त सुनाकर कहा कि उनके दुष्कर्मों का भार उसके लिए असह्य हो गया है उसे दूर करने का यत्न करना चाहिए।” पृथ्वी की यह बात सुनकर ब्रह्मा शंकरादि अन्य देवताओं सहित विष्णु भगवान के पास गए तब भगवान विष्णु ने पृथ्वी को व देवताओं को आश्वासन देते हुए कहा कि, “मेरी “गौर और श्याम” यह दो शक्तियाँ वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भूमि पर अवतरित होगी जो दैत्यों का नाशकर धर्म की स्थापना करेगी।”

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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