गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
(5) श्रीकृष्णावतार यदुवंश में देवमीढ नाम का धर्मज्ञ राजा था जिसके वसुदेव नाम का पुत्र था। इस वसुदेव का विवाह कंस के पिता उग्रसेन के छोटे भाई देवक की पुत्री देवकी के साथ हुआ था। अपनी इस चचेरी बहन देवकी को जब कंस विदा करने जा रहा था तो उस समय यह आकाशवाणी हुई कि - “जिस देवकी को कंस! तुम उत्साहपूर्वक पतिगृह पहुँचाने जा रहे हो, उसी के आठवें पुत्र द्वारा तुम्हारी मृत्यु होगी” जिसके परिणामस्वरूप बहन के प्रति कंस का प्रेम मृत्युभय के कारण घृणा में परिवर्तित हो गया और कंस देवकी का वध-करने पर उतारू हो गया। वसुदेव द्वारा यह प्रण करने पर कि जो सन्तान देवकी से उत्पन्न होगी उसे वह कंस के सुपुर्द कर देगा कंस ने देवकी को मारने का विचार तो छोड़ दिया किन्तु उसने वसुदेव और देवकी को बन्दी बनाकर कारागृह में डाल दिया। द्वापर-युग में दैत्यों के आतंक से पृथ्वी पीड़ित हो गाय का रूप धारण कर ब्रह्मा के पास गई और कंस आदि दैत्यों के कुकर्मों का वृत्तान्त सुनाकर कहा कि उनके दुष्कर्मों का भार उसके लिए असह्य हो गया है उसे दूर करने का यत्न करना चाहिए।” पृथ्वी की यह बात सुनकर ब्रह्मा शंकरादि अन्य देवताओं सहित विष्णु भगवान के पास गए तब भगवान विष्णु ने पृथ्वी को व देवताओं को आश्वासन देते हुए कहा कि, “मेरी “गौर और श्याम” यह दो शक्तियाँ वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भूमि पर अवतरित होगी जो दैत्यों का नाशकर धर्म की स्थापना करेगी।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज