गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
कारागृह में देवकी के जो छः पुत्र क्रमशः हुए उनको कंस ने मरवा डाला। देवकी का सातवाँ गर्भ अनन्तांश था। उस गर्भ को योगमाया ने देवकी के गर्भ से हटाकर रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। गर्भ को खैंचने के कारण जो बालक रोहिणी के हुआ उसका नाम संकर्षण हुआ। देवकी के आठवें गर्भ में स्वयं भगवान विष्णु अवतरित हुए जो भाद्र कृष्णा अष्टमी को अर्धरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में चतुर्भुज रूप में प्रगट हुए। वसुदेव के पुत्र होने के कारण यह वासुदेव कहलाए। वसुदेव अपने पुत्र को लेकर बन्दीगृह से बाहर निकल आए; अर्धरात्रि थी, घोर वर्षा हो रही थी तथा घोर अन्धकार था, कालिन्दी नदी उमड़ रही थी। ऐसी विकट बेला में वसुदेव यमुना पार कर गोकुल पहुँचे और बालक को नन्द-पत्नी यशोदा के पास सुला दिया। उसी समय यशोदा के भी कन्या ने जन्म लिया था। वसुदेव उस कन्या को उठाकर बन्दीगृह में ले आए। वसुदेव के बाहर निकलने, गोकुल से यशोदा की कन्या को लाने व वापस बन्दीगृह में प्रवेश होने का पता किसी को नहीं हुआ इसके पश्चात् नवजात शिशु का रुदन सुनकर प्रहरी ने कंस को सूचना दी; कंस दौड़कर प्रसूति गृह में गया और जब कन्या को देवकी से छीना तो कन्या कंस के सिर पर लात मारकर आकाश में ऊपर उड़ गई और अष्टभुजा देवी का रूप धारण कर बोली कि, “मूर्ख! तुझे मारने वाला तेरा शत्रु प्रगट हो चुका है।” कंस ने हताश हो देवकी को और वसुदेव को बन्दीगृह से मुक्त कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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