गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 407

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-4
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
Prev.png

कारागृह में देवकी के जो छः पुत्र क्रमशः हुए उनको कंस ने मरवा डाला। देवकी का सातवाँ गर्भ अनन्तांश था। उस गर्भ को योगमाया ने देवकी के गर्भ से हटाकर रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। गर्भ को खैंचने के कारण जो बालक रोहिणी के हुआ उसका नाम संकर्षण हुआ। देवकी के आठवें गर्भ में स्वयं भगवान विष्णु अवतरित हुए जो भाद्र कृष्णा अष्टमी को अर्धरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में चतुर्भुज रूप में प्रगट हुए। वसुदेव के पुत्र होने के कारण यह वासुदेव कहलाए। वसुदेव अपने पुत्र को लेकर बन्दीगृह से बाहर निकल आए; अर्धरात्रि थी, घोर वर्षा हो रही थी तथा घोर अन्धकार था, कालिन्दी नदी उमड़ रही थी। ऐसी विकट बेला में वसुदेव यमुना पार कर गोकुल पहुँचे और बालक को नन्द-पत्नी यशोदा के पास सुला दिया।

उसी समय यशोदा के भी कन्या ने जन्म लिया था। वसुदेव उस कन्या को उठाकर बन्दीगृह में ले आए। वसुदेव के बाहर निकलने, गोकुल से यशोदा की कन्या को लाने व वापस बन्दीगृह में प्रवेश होने का पता किसी को नहीं हुआ इसके पश्चात् नवजात शिशु का रुदन सुनकर प्रहरी ने कंस को सूचना दी; कंस दौड़कर प्रसूति गृह में गया और जब कन्या को देवकी से छीना तो कन्या कंस के सिर पर लात मारकर आकाश में ऊपर उड़ गई और अष्टभुजा देवी का रूप धारण कर बोली कि, “मूर्ख! तुझे मारने वाला तेरा शत्रु प्रगट हो चुका है।” कंस ने हताश हो देवकी को और वसुदेव को बन्दीगृह से मुक्त कर दिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः