गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
12 वीं शताब्दी में ही हिन्दू दार्शनिकों द्वारा एक ग्रन्थ “अल्लोपनिषद” नाम का रचा गया। इस ग्रन्थ में अल्लाह को विष्णु स्वरूप अलख, निरन्जन, निराकार, निर्गुण, अव्यक्त तथा अद्वैत रूप में, और अल्लाह के प्रतिनिधि रसूल मुहम्मद[1] को सगुण व साकार अंशावतार के रूप में सिद्ध किया है। सन् 1133 से 1171 ई. में सन्त वसवेश्वर का आविर्भाव रहा। इन्होंने तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों को देखकर “वीर-शैव-धर्म” का प्रचार कर मानव जीवन को नया प्रवाह, नई चेतना व आध्यात्मिक क्रान्ति दी। सन्त विश्वेश्वर ने कामिनी और कंचन के त्याग को सच्चा त्याग कहा, अधर्म से प्राप्त वस्तु को न लेना ही सच्चा व्रत कहा, अहिंसा को धर्म, शान्ति को तप, कपट न करने को भक्ति, सदाचार को स्वर्ग, अनाचार को नरक, तथा झूठ को मृतलोक बताया। 12 वीं शती के अन्त सन् 1185 ई. में सन्त जयदेव का जन्म हुआ। इनको श्रीमद्भागवत के रचयिता भगवान व्यास का अवतार माना जाता है। सन्त जयदेव की सुप्रसिद्ध रचना भक्ति-रस-प्रधान काव्य “गीत-गोविन्द” है जिसने जनसाधारण को विशेषतः मुस्लिम मस्तिष्क को भावुक व सरस बना दिया। अपने उपास्यदेव भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम और विरह-लीला का जो चित्रण गीत-गोविन्द में सन्त जयदेव ने किया है वह श्रीमद्भागवत, पद्मपुराण, गर्गसंहिता, हरिवंश आदि ग्रन्थों के आधार पर किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पैगम्बर
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