गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 33

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीतोपदेश के पश्चात् भागवत धर्म की स्थिति
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12 वीं शताब्दी में ही हिन्दू दार्शनिकों द्वारा एक ग्रन्थ “अल्लोपनिषद” नाम का रचा गया। इस ग्रन्थ में अल्लाह को विष्णु स्वरूप अलख, निरन्जन, निराकार, निर्गुण, अव्यक्त तथा अद्वैत रूप में, और अल्लाह के प्रतिनिधि रसूल मुहम्मद[1] को सगुण व साकार अंशावतार के रूप में सिद्ध किया है।

सन् 1133 से 1171 ई. में सन्त वसवेश्वर का आविर्भाव रहा। इन्होंने तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों को देखकर “वीर-शैव-धर्म” का प्रचार कर मानव जीवन को नया प्रवाह, नई चेतना व आध्यात्मिक क्रान्ति दी। सन्त विश्वेश्वर ने कामिनी और कंचन के त्याग को सच्चा त्याग कहा, अधर्म से प्राप्त वस्तु को न लेना ही सच्चा व्रत कहा, अहिंसा को धर्म, शान्ति को तप, कपट न करने को भक्ति, सदाचार को स्वर्ग, अनाचार को नरक, तथा झूठ को मृतलोक बताया।

12 वीं शती के अन्त सन् 1185 ई. में सन्त जयदेव का जन्म हुआ। इनको श्रीमद्भागवत के रचयिता भगवान व्यास का अवतार माना जाता है। सन्त जयदेव की सुप्रसिद्ध रचना भक्ति-रस-प्रधान काव्य “गीत-गोविन्द” है जिसने जनसाधारण को विशेषतः मुस्लिम मस्तिष्क को भावुक व सरस बना दिया। अपने उपास्यदेव भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम और विरह-लीला का जो चित्रण गीत-गोविन्द में सन्त जयदेव ने किया है वह श्रीमद्भागवत, पद्मपुराण, गर्गसंहिता, हरिवंश आदि ग्रन्थों के आधार पर किया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पैगम्बर

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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