गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
इस समय में स्मृतियों पर टीकाएँ लिखी गई तथा धर्म-निबन्धों की रचनाएँ हुई। विज्ञानेश्वर पण्डित ने “मिताक्षर” हिन्दू क़ानून बनाया, कल्लूकभट्ट ने मनुस्मृति पर भाष्य लिखा, माधव पण्डित ने पराशर स्मृति पर टीका लिखी, विश्वेश्वर पंडित ने ‘मदन-पारिजात’ स्मृति लिखी और चण्डेश्वर पण्डित ने अनेक धर्म-ग्रन्थ लिखे। आचार्य विद्यारण्य ने दक्षिण में अपनी “पंचदशी” पुस्तक में ब्रह्म, जीव और जगत का विश्लेषण कर ब्रह्म की सत्यता को सिद्ध किया, महात्मा नामदेव सन् 1271 से 1351 ई. आचार्य श्रीभट्ट भास्कर सन 1296 ई., सन्त शारंगधर 1301 ई., श्रीहरिव्यासदेवाचार्य सन 1429 ई., भगवान गोस्वामी सन 1464 ई. में हुए जिन्होंने स्वधर्म स्वदेश व समाज को यावनीय संस्कृति के प्रवाह से सुरक्षित रक्खा। भारतीय सन्त महात्माओं के धार्मिक आन्दोलन के साथ-साथ हिन्दू राजाओं के राज-कवियों ने भी वीर-रास प्रधान रचनाओं द्वारा हिन्दू समाज में वह हिन्दू राजाओं मे क्षत्रित्व व वीर-जवान का संचार करके उस समय की आवश्यक कमी को पूरा करने में प्रशंसनीय व महान योग दिया। वीर-रस प्रधान काव्यों की रचना सन् 1100 से सन 1400 ई. तक निर्बाधित रूप से होती रही। इस 400 वर्ष के समय में नरपति नाल्ह द्वारा “बिलसदेव रासा”; राजकवि सोमकृत “ललित विग्रहराज” नाटक; कवि जगनक कृत “पृथ्वीराज रासो”; कवि सारंगधर कृत “खुमान रासो” व हम्मीर रासो; भट्ट नल्हसिंह कृत “विजयपाल रासो” आदि वीर काव्य रचे गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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