गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 32

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीतोपदेश के पश्चात् भागवत धर्म की स्थिति
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इस समय में स्मृतियों पर टीकाएँ लिखी गई तथा धर्म-निबन्धों की रचनाएँ हुई। विज्ञानेश्वर पण्डित ने “मिताक्षर” हिन्दू क़ानून बनाया, कल्लूकभट्ट ने मनुस्मृति पर भाष्य लिखा, माधव पण्डित ने पराशर स्मृति पर टीका लिखी, विश्वेश्वर पंडित ने ‘मदन-पारिजात’ स्मृति लिखी और चण्डेश्वर पण्डित ने अनेक धर्म-ग्रन्थ लिखे।

आचार्य विद्यारण्य ने दक्षिण में अपनी “पंचदशी” पुस्तक में ब्रह्म, जीव और जगत का विश्लेषण कर ब्रह्म की सत्यता को सिद्ध किया, महात्मा नामदेव सन् 1271 से 1351 ई. आचार्य श्रीभट्ट भास्कर सन 1296 ई., सन्त शारंगधर 1301 ई., श्रीहरिव्यासदेवाचार्य सन 1429 ई., भगवान गोस्वामी सन 1464 ई. में हुए जिन्होंने स्वधर्म स्वदेश व समाज को यावनीय संस्कृति के प्रवाह से सुरक्षित रक्खा।

भारतीय सन्त महात्माओं के धार्मिक आन्दोलन के साथ-साथ हिन्दू राजाओं के राज-कवियों ने भी वीर-रास प्रधान रचनाओं द्वारा हिन्दू समाज में वह हिन्दू राजाओं मे क्षत्रित्व व वीर-जवान का संचार करके उस समय की आवश्यक कमी को पूरा करने में प्रशंसनीय व महान योग दिया।

वीर-रस प्रधान काव्यों की रचना सन् 1100 से सन 1400 ई. तक निर्बाधित रूप से होती रही। इस 400 वर्ष के समय में नरपति नाल्ह द्वारा “बिलसदेव रासा”; राजकवि सोमकृत “ललित विग्रहराज” नाटक; कवि जगनक कृत “पृथ्वीराज रासो”; कवि सारंगधर कृत “खुमान रासो” व हम्मीर रासो; भट्ट नल्हसिंह कृत “विजयपाल रासो” आदि वीर काव्य रचे गए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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