हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 75

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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विशुद्ध प्रेम का स्वरूप

प्रीति की रीति रँगीलौई जानैं।
जद्यपि सकल लोक चूड़ामणि, दीन अपनपौ मानैं।।
यमुना पुलिन निकुंज भवन में, मान मानिनी ठानैं।
निकट नवीन कोटि कामिनी कुल, धीरज मनहिं न आनैं।
नश्‍वर नेह चपल मधुकर ज्‍यौं आन आन सौं बानैं।।
हित हरिवंश चतुर सोइ लालहिं छाँड़ि मैंड पहिंचानैं।।[1]

रसास्‍वाद के लिये मधुकर-वृत्ति आदर्श मानी जाती है। श्रीमद् भागवत में नंदनंदन की मधुकर-केलि का ही वर्णन है। वहाँ गोपीजनों को मधुकर के दर्शन से घनश्‍याम का स्‍मरण हो आता है। श्री हितप्रभु ने अपने एक पद में शारदीय रास का वर्णन किया है। पद के अन्‍त में आप कहते हैं कि इस मधुकर-केलि को देखकर रसिकों को सुख मिलता है-‘हित हरिवंश रसिक सचु पावत देखते मधुकर केली।'[2]

निस्‍सन्‍देह, मधुकर-वृत्ति रसिकता का प्रतीक है और भगवान ने भी इसका आश्रय लिया है, किन्‍तु सम्‍पूर्ण रसास्‍वाद के लिये एक यही वृत्ति पर्याप्‍त नहीं होती। मधुकर की चपलता प्रसिद्ध है। वह नूतनता की खोज में भिन्‍न-भिन्‍न पुष्‍पों का ग्रहण करता रहता है और किसी एक के सर्वथा अधीन बनकर प्रीति‍ का निर्वाह नहीं करता है। उसको यह मालूम नहीं रहता कि प्रीति का निर्वाह करने से वह नित्‍य-नूतन आस्‍वादित होने लगती है और फिर विभिन्‍न स्‍थानों में नूतनता की खोज में भटकना नहीं पड़ता। मधुकर-वृत्ति की यही एक ‘मैंड़’-मर्यादा-है जिसको छोड़ कर नित्‍य विहारी-श्‍याम-सुन्‍दर को पहिचानना चाहिये। मधुकर का प्रेम नश्‍वर होता है; उसमें प्रेम के अखण्‍ड-स्‍वरूप के दर्शन नहीं होते। नित्‍य-विहारी श्‍यामसुन्‍दर मधुकर होते हुए भी अखण्‍ड प्रीति के पुजारी हैं। एकमात्र श्री राधा के प्रति सर्वस्‍व-हारा बनकर वे मधुकर-वृत्ति से अपने प्रेम का आस्‍वाद करते हैं। ‘श्री राधा के भ्रकुटि-नर्तन, मृदु वदन-कमल, सरस हास एवं मधुबोलनि ने इस अत्‍यन्‍त आसक्त ‘अलि लम्‍पट’ को बिना मोल के वश कर लिया है। उनके हाथों यह ‘अलि लम्‍पट’ बिना मोल के बिक गया है।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 41
  2. हि०च० 63

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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