हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 494

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

एक अक्षर वाले छंद का उदाहरण है, ‘वंदे राधां’, दो अक्षर वाले स्त्री-छंद का उदाहरण है, ‘कृष्‍णोभूयात्, बह्वी तृष्‍णा’, तीन अक्षर वाला नारी छंद, ‘राधाया: प्राणोशं, ध्‍यायमो निर्बाधम्’। चार अक्षर वाला मृगी छंद, ‘सादरं वल्लभ, राधिकाया भजे’। चार अक्षर वाले छंदों की अन्य दो जातियाँ कन्या और तरणिजा सोदाहरण दी हुई हैं। पांच अक्षर वाले छंद की दो जातियां दी हैं पंक्ति और प्रिया। छ: अक्षर वाले छंद की शशिवदना और सोमराजी। सात अक्षर वाले छंद की मधुमती, कुमार ललिता और मदलेखा। आठ अक्षर वाले छंद की चित्रपदा, माणावक और विधुन्माला; नौ अक्षर वाले छंद की भुजंग शिशुसृता, समानिका, प्रमाणिका, मणिमध्‍या ओर भुजंग संगता; दस अक्षर वाले छंद की रुक्मवती, मत्ता,[1] त्वरित गति और मनोरमा; ग्यारह अक्षर के छंद की इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, सुमुखी, शालिनी, वातोर्मि, भ्रमर विलसिता, अनुकूला, रथोद्वता, स्वागता, दोधक, मोटनक और श्‍येनी; बारह अक्षर वाले छन्द की चन्द्रवर्त्म,[2] वंशस्थ, इन्द्रवंशा, जलोद्वत, भुजंगप्रयात, तोटक, स्त्रग्बिणी, वैश्‍वदेवी, प्रमिताक्षरा, द्रुतविलम्बित, मंदाकिनी, कुसुम विनिता, तामरस,[3] मालती, मणिमाला और जलधरमाला, तेरह अक्षर के छंद की प्रहर्षिणी, रुचिरा, मत्तमयूर, चंडी, मंजुभाषिणी, चन्द्रिका, कलहंस, प्रबोधिता और मृगेन्द्रमुख; चौदह अक्षर के छन्द की असंबाधा, वसंततिलका, अपराजिता, प्रहरण, कलिका, वांसती, लीला ओर नांदीमुख; पन्द्रह अक्षर वाले छंद की शशिकला, स्त्रक्, मणिगुणानिकर, मालिनी, लीला खेल, विपिनतिलकं, तूणकं, चन्द्रलेखा और चित्रा; सोलह अक्षर के छन्द की चित्रं, ऋषभगजविलसितं, चकिता, पंचचामरम्, मदनललिता, वाणिनी, प्रवरललिता, अचलधृति[4] और गरुड़रुतम्; सत्रह अक्षर वाले छन्द की शिखरिणी, पृथ्‍वी, वंशपत्रपतितं, मन्दा- क्रान्ता, हरिणी, नर्द्दक, कोकिलकं, हारिणी और भाराक्रान्ता;[5] अठारह अक्षर वाले छन्द की कुसुमितलता वेल्लिता, नंदन, नाराच, चित्रलेखा और शार्दूल ललिता; उन्नीस अक्षर वाले छन्द की मेघस्फुर्जिता, लीला, शार्दूलवि‍क्रीडिता, सुरसा और फुल्लादाम, बीस अक्षर वाले छंद की सुवदना, गीतिका, चित्रवृत्त और शोभ; इक्कीस अक्षर वाले छंद की स्त्रग्धरा, सरसी अथवा सिन्धुरमिति; बाईस अक्षर वाले छन्द की हंसी और मदिरा; तेईस अक्षर वाले छन्द की अद्रितनया ओर मत्ता, चौबीस अक्षर वाले छंद की तन्वी; पच्चीस अक्षर वाले छंद की क्रौंचपदा; छब्बीस अक्षर वाले छंद की भुजंग विजृभित जातियों के लक्षण और उदाहरण इस ग्रंथ में दिये गये है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राधाकृष्‍ण प्रणाय पराणं तद् गाथाभि: सफलित वाचाम्। रोमोत्थाने विषम तनूनां पादाम्भोजे भवतु रतिर्मे ।।
  2. बर्ह चन्द्र चय चुंबितचिकुरा तार हारवलितोरसि मधुरा। राधिकांस निहितैक भुजलता कृष्‍णमूर्तिरुदयान्ममहृदि किं ।।
  3. व्रजयुवती जनलोचन पेयं कथमपि नो मुनिभिर्हृदिनेय। ममखलू निश्‍चलताधिषणोयं यदसित गौरमहोननुगेयम् ।।
  4. जयजय तरणि दुहितृ तटरुचिकर जयजय पशुप युवति धृत रसभर। जयजय तनु रुचिलघयितजलधर ननुमदगणित विगुणमपि परिहर ।।
  5. चित्रं ज्योति, सुमधुरमुतं, स्फुरच्छिसि विच्छकं, राधासक्तं, नवधननिभं, वने परितो व्रजत्। वंशी नादामृत रसचित, सदा मम मानसे, लोकातीतं स्फुरतु सुलभं गुरोरनुकम्पया ।।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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