हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 437

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
श्री हित रूपलाल काल के अन्य प्रमुख वाणीकार
समाधि अलंकार,

राधा पग मंजीर-धुनि परै कहूँ जो कान।
कृत्य-कृत्य ह्वै जात पिय जीवन रसिक सुजान।।

इसके अतिरिक्ति, इस ग्रन्थ में षट् ऋतु विलास, व्रज की होली निकुंज की होली, व्रज का बिहावला, निकुंज का बिहावला, दिवाली उत्सव, नन्दोत्सव, श्री हित जी के जन्मोत्सव आदि का सुन्दर वर्णन दोहों में ही किया गया है। ग्रन्थ के अंत में प्रेमतत्त्व का वर्णन, कृष्णगढ़ वाले नागरीदास जी के इश्क-चमन के ढंग पर, दोहों में किया है।

इश्क शहर बाजार में लगी हुस्न की पैंठ।
तोलत आशिक नैन में महबूबा दी ऐंठ।।
इश्क कहर दरियाव है बिरला निवहत जाय।
चढ़े चश्म किश्ती तऊ फिरि-फिरि गोता खाय।।
इश्क शहर के बीच तु बेसिर होके आव।
इश्क सजीवन है जड़ी धरि मन में यह भाव।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः