हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 421

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
श्री चन्द्रलाल गोस्वामी

हिय अकुलाल तरसात सरसात सदा,
बार-बार कहौं अजू कृपा बेगि कीजिये।
अंतराय पलहू कौ मै तौ न सम्हार सकौ,
छिन-छिन माँझ मेरौ यह तन छीजिये।।
रूप सिंध भींजिये यों कृपा रस पीजिये,
औ कबहूँ न पतीजिये जू यही जस लीजिये।
साँचे तौ अनेक तारे प्यारे लाल-बाल,
एक चंद झूंठे हू कौं बास वृन्दावन दीजिये।।[1]



Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (अभिलाष बत्तीसी)

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः