हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 415

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

गौर तन चुनरि सुरँग लसी है।
अति ही वेष सुदेश रीति सौ अँग-अँग अगसग सी है।।
मानौं कनक खंभ के अंतर सरसुति धार धसी है।
किधौं अनुराग जाल में कौतिक दामिनि आनि फसी है।।
छोटी दूँदे खुभि रहीं ता मधि इहि निधि छवि दरसी है।
अति मृदु गात परसि प्यारी के भाग्य मनाइ हंसी है।।
पुनि तन बने मणिनु के भूषण तिनकी दुति निकसी है।
अब अँग मनहुँ भये रोमांचित गरुवे प्रेम डसी है।।
पवन परसि छूटत जब तन तै सिर तै कछुक खसी है।
तब रँग हानि सहति जल भींजत गाढ़ी कसनि कसी है।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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