हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 409

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

रूप गर्व कौ अचल सिहांसन छत्र सुहाग सदाई।
मंत्री नेह कियौ बस अपने त्रिभुवन ईस कन्हाई।।
देश सुदेस प्रेम प्रीतम सौ सकल सुखन की रासी।
कला अनेक रहत कर जोरै शक्ति सबै जाकी दासी।।
गुन अति गहर कहत नहिं आबै परजा आज्ञाकारी।
नव जोबन आनँद की वैभव विलसत पिय सँग प्यारी।।
सुरत समर दल-मले मदन दल नूपुर निसान बजाई।
वृन्दावन हित रूप स्वामिनी अखिल भुवन की राई।।

चाचा जी को व्यतिरेक अलंकर भी बहुत प्रिय है और उसकी बड़ी सुन्दर योजनायें उनके अनेक पदों में मिलती हैं। एक उदाहरण देखिये;

भींजत कुंजनि तर छवि पावन।
उत नव नीरद इतहि श्याम धन दुहुँ दिसि बहस बढ़ावत।।
उत दामिनि इत भामिनि राधा छिन-छिन छबि सरसावत।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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