हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 397

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

राधावल्लभीय परिपाटी की लीलाओं में राधा-कृष्ण के प्रेम-रूप का वर्णन तो खूब होता है किन्तु नई-नई परिस्थितियों और संयोगों का चमत्कार कम रहता है। चाचा जी ने अपनी अधिकांश लीलाओं में वृन्दावन रस रीति की रक्षा करते हुए इस कमी को पूर्ण करने की चेष्टा की है और इसलिये उनकी लीलायें अधिक लोकप्रिय बन सकी हैं। उदाहरण के लिये उनका एक झूलन का पद ले लीजिये। लाड़ भरी श्री राधा बरसाने में झूल रही है। उनके अद्भुत प्रेम-रूप के स्वाभाविक वर्णन से चाचा जी पद को आरंभ करते हैं,

झूलत प्रिया सभागी मुरली धरन की।
बल्लव राज कुमारी गोरे बरन की।।
गौर बरन बिसाल नैनी नवल जीवन उलहनी।
जसोमति जो लाड़ भाजन तासु प्यारी दुलहनी।।
प्रेम सरोवर झुके तरुवर महा कमनी तीर में।
सुथरता किन विधि रची तन लसै कंसूभी चीर में।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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