हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 356

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री कल्याण पुजारी जी

श्री ध्रुवदास काल के अन्य प्रमुख वाणीकार:-

श्री कल्याण पुजारी जी- यह श्री बनचन्द्र गोस्वामी के शिष्य थे और उनकी ओर से राधावल्लभ जी के मंदिर में पुजारी नियुक्त थे। ‘रसिक अनन्य माला’ में इनका चरित्र दिया हुआ है। यह उच्चकोटि के रसिक महात्मा थे। इनके लगभग दो सौ पद लेखक ने देखे हैं। पदों में यह अपना नाम ‘कली’ या ‘कलीअलि’ देते हैं। इनका वाणी रचना काल सं. 1660 से सं. 1700 तक माना जा सकता है। इनके दो पद दिये जाते हैं।

धुरि आये री बदरा काजरे बन बोलत चातक मोर री
घन गरजनि आजु सुहावनी
वरभूमि हरी वृन्दाटवी छवि देखत लाजै कामरी ।
रंग भाँतिनु-भाँतिनु को गनै कल कोमलता कौ धामरी ।।
श्री राधा कौं आराधि कैं पियु बोलत मीठे बोलरी ।
नँदलाल लाड़िलौ लालची तुम लेहु प्रिया मोहि मोलरी ।।
दोऊ कुंज हिंडोरे झूलहीं नव फूल न अँग समाइरी ।
रमकावत गावत गोपिका उर आनन्दसिंधु बढ़ाइरी ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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