हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 352

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सहचरि सुख जी
वसंत

हेली कुंजनि रँग उलह्यौ अनंत मन मोहन तन फूल्यौ वसंत ।
मैंन लपेटी रूप कलिनि नव जोवन प्रगटत
खिलति खुलति छवि विविध फूल वरसत लसंत ।।
नव किशोरता मिली मधु वरसत कान्ह कुँवर पिय
चित चिकनावत भये हैं सकामी महा संत ।
सहचरि सुख वारी प्यारी तू लपटि ललना लाल उर
है सिंगार की, अति ओपैगौ स्याम कंत ।।
रूप बावरौ नंद महर कौ बहुरि बन्यौ होरी कौ छैल ।
रोकत टोकत घूँघट खोलत भर पिचकारी तकत उरोजनि
गोकुल री माई चलत न गैल ।
छल सौं मसलि गुलाल मुठी भरि निरखि रहत पुनि
लाल न आबत, हिये भरे होरी के फैल ।।
कहिये कहा और सहचरि सुख मदन मवास
रहत व्रज जाके, अंग-अंग ज कटीली सैल ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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