हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 337

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री दामोदर स्वामी

स्वामी जी की अन्य रचनायें गुरु प्रातप, नेमवत्तीसी, सिद्धान्त के पद, बधाईयाँ, उत्सवों के पद, रहस-विलास, बिहावला, चौपड़ खेल, फुटकर बानी, साखी और जजमान कन्हाई जस हैं। इनके अनेक पदों में उत्प्रेक्षाओं की छटा दर्शनीय होती है। ‘नेम बत्तीसी’ की रचना सं. 1687 में हुई है अत: स्वामी जी का रचना काल सं. 1670 से सं. 1700 तक माता जा सकता है। इनकी वाणी के कुछ नमूने देखिये,

हरि जस ज्यौं गावै त्यौं नीकौ ।
करत पुनीत महा पापिन कौं सकल धरम कौ टीकौ ।।
तान बँधान अजान जानि कै फल दायक सबही कौ ।
कोउ कहुँ खाउ अंधेरे उजारें नहि गुड़ लागत फीकौ ।।
श्रुति कौ सार अधार साधु कौ ज्यौं जल जीवन जीकौ ।
दामोदर हित हरि जस बिन सब भस्म हुतौ ज्यौं घी कौ ।।

मन रे भजिये नंदलला ।
गृह कानन में रहौ कहूँ कोउ पकरत नहीं पला ।।
वेद पुराण सुमृत यौं भाखै और कछू न भला ।
दिन-दिन बढ़ै प्रताप सुकल पछ जैसे चंद कला ।।
काकौ धन, काके पसु मंदिर, काके सुत अवला ।
थिर नाही कछु दामोदर हित जग में चली चला ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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