हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 332

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री दामोदर स्वामी

चरित्र- इनका चरित्र भी रसिक अनन्य माल में दिया हुआ है। यह लाल स्वामी जी के शिष्य थे और कीरतपुर के रहने वाले थे। कुछ दिनों के बाद यह वृन्दावन चले गये और शेष जीवन वहीं व्यतीत किया। यह उच्चकोटि के महात्मा और पूर्ण सदाचारी पुरुष थे। इनके स्वभाव का वर्णन भगवत मुदित जी ने इस प्रकार किया है,

काहू बुरौ भलौ नहिं कहैं, निर्दूषित सबही सौं रहैं ।
निंदा काहू की नहि करैं, जो कोऊ करै तहाँ तैं टरैं ।।
मिथ्या मुख तैं कबहुँ न बोलैं, पर औगुन कौ गुन कर तोलै ।
उत्तम सबनि आप तै मानैं, सब तै निंद अपनपौ जानै ।।
विधि-निषेध सबहीं तै न्यारे, धर्म इष्ट जन लागत प्यारे ।

स्वामी जी को, पक्के निकुंजोपासक होते हुए भी, श्रीमद्भागवत से बहुत प्रेम था। उन्होंने भागवत की दस प्रतियाँ सुन्दर लिपि में अपने हाथ से लिख कर गुरु कुल में तथा अन्य अधिकारी व्यक्तियों को भेंट की थीं। इनके ‘चरित्र’ में से एक रोचक घटना यहाँ दी जाती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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