हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 326

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री ध्रुवदास काल

राधावल्लभीय साहित्य में पाई जाने वाली यह रहस्यमयता हमारे परिचित ‘रहस्यवाद’ के अन्तर्गत तो नही आती किन्तु भक्ति-काव्य की सगुण धारा में यह एक अनौंखी घटना है।

ध्रुवदास जी का प्रेम-सम्बन्धी दृष्टि कोण अत्यन्त सूक्ष्म और सुकुमार है और उसकी अभिव्यक्ति भी अत्यन्त कोमल और व्यन्जना पूर्ण हुई है। उनकी भाषा शुद्ध और प्रवाह युक्त व्रजभाषा है और उसमें प्रान्तीय बोलियों के शब्दों की मिलौंनी बहुत कम है।

उनकी वाणी में सस्ती भावुकता को व्यक्त करने वाले हल्के और ग्रामीण शब्दों का प्रयोग बिलकुल नहीं हुआ है, जो कुछ भी है वह प्रसन्न और गंभीर है। उनके नित्य विहार के वर्णन तो कोमल हैं ही उनका उपदेश देने का ढंग भी अत्यन्त मृदु और संयत है। उनके उपदेशों में अकुलाहट और अक्खड़पन कहीं दिखलाई नहीं देते। उन्होंने श्रीहित हरिवंश की भाँति अलंकारों का उपयोग कम किया है। सादृश्य उपस्थित करने का उनका एक अपना ढंग है, यह हम देख चुके हैं। ऊपर उद्धृत पद्यों में उनकी उत्प्रेक्षाओं के कुछ सुन्दर उदाहरण मौजूद हैं। अन्य अलंकार भी बड़े सुन्दर और मार्मिक हैं,

उपमा तौ सब जे कहीं एसी चित्त विचार ।
जैसे दिनकर पूजिये आगे दीपक बार ।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (मन शिक्षा)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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