श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री ध्रुवदास काल
ध्रुवदास जी ने विभिन्न तरंगों के बीच के सहज सम्बन्ध को बड़े स्वाभाविक ढंग से दिखलाया है और कहीं भी ‘जोड़’ की प्रतीति नहीं होने दी है। पूरी लीला एक संयुक्त प्रेम-प्रवाह के रूप में पाठक की दूष्टि के सामने उपस्थित होती है और उसका प्रभाव भी वैसा ही पड़ता है। मूर्त-अमूर्त को मिला कर लीला वर्णन करने का एक परिणाम यह हुआ है कि ध्रुवदास जी के घोर श्रृंगारिक वर्णनों में भी एक अद्भुत उज्ज्वलता और शुचिता के दर्शन होते हैं। इस प्रकार का एक वर्णन देखिये- नैन कपोलन चूमि कै लये अंक भुज लाल। लीलाओं में कहीं-कहीं ध्रुवदास जी ने नित्य विहार का वर्णन सांग रूपकों के द्वारा किया है। ‘मन श्रृंगार लीला’ में ‘रति-विलास-सतरंज’ क रूपक दिया है और रसानंद लीला में ‘चौपड़ के खेल’ का रूपक मिलता है। सुख मंजरी लीला में उन्होंने ‘अद्भुत बैदक मधुर रस’ का वर्णन किया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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