हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 317

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री ध्रुवदास काल

ध्रुवदास जी ने विभिन्न तरंगों के बीच के सहज सम्बन्ध को बड़े स्वाभाविक ढंग से दिखलाया है और कहीं भी ‘जोड़’ की प्रतीति नहीं होने दी है। पूरी लीला एक संयुक्त प्रेम-प्रवाह के रूप में पाठक की दूष्टि के सामने उपस्थित होती है और उसका प्रभाव भी वैसा ही पड़ता है।

मूर्त-अमूर्त को मिला कर लीला वर्णन करने का एक परिणाम यह हुआ है कि ध्रुवदास जी के घोर श्रृंगारिक वर्णनों में भी एक अद्भुत उज्ज्वलता और शुचिता के दर्शन होते हैं।

इस प्रकार का एक वर्णन देखिये-

नैन कपोलन चूमि कै लये अंक भुज लाल।
अधर सुधा रस दै मनौं सींचत मैन-तमाल ।।
सुरत सिंधु सुख रस बढ़यौ अति अगाध नहि पार ।
लाज नेम पट दूरि कै मज्जत दोउ सुकुमार ।।
रस विनोद विपरीति रति वर्षत प्यार कौ मेह ।
चल्यौ उमिड़ि भर नेम की तोरि मैंड़ जल नेह ।।
अंग-अंग अरुझानि की शोभा बढ़ी सुभाइ ।
मृदुल कनक की बेलि मनौं रहि तमाल लपटाइ ।।
(रस रतनावली)

लीलाओं में कहीं-कहीं ध्रुवदास जी ने नित्य विहार का वर्णन सांग रूपकों के द्वारा किया है। ‘मन श्रृंगार लीला’ में ‘रति-विलास-सतरंज’ क रूपक दिया है और रसानंद लीला में ‘चौपड़ के खेल’ का रूपक मिलता है। सुख मंजरी लीला में उन्होंने ‘अद्भुत बैदक मधुर रस’ का वर्णन किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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