श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
स्वामी चतुर्भुजदास जी
स्वामी चतुर्भुजदास जी- सवेक जी के मिद्ध थे और गढ़ा के ही रहने वाले थे। श्री हिताचार्य के निकुंज गमन का समाचार सुनकर सेवक जी तो उनकी ही दीक्षा लेने का हठ लेकर वहीं रह गये और चतुर्भुजदास जी वृन्दावन चले गये और श्री बनचन्द्र गोस्वामी से दीक्षा लेली। भजन-सम्पन्न होकर चतुर्भुजदास जी विमल रस-भक्ति के प्रचार में लग गये। उनके साथ अनेक रसिक संत और पंडित लोग रहते थे। उन्होंने अपने देश गौंडवाने के गाँव-गाँव घूमकर लोगों के जीवन में आमूल परिवर्तन कर दिया। मध्य प्रदेश के अपने स्थानों में वे गये और अनेक राजाओं को शिष्य बनाया। चतुर्भुजदास जी बड़े निर्भय और निष्ठावान संत थे। इनके ‘द्वादश यश’ प्रकाशित हो चुके हैं। यशों के नाम हैं, शिक्षा सकल समाज यश, धर्म विचार-यश, प्रक्ति प्रताप यश, संत प्रताप यश, शिक्षा सार यश, हितोपदेश यश, पतित पावन यश, मोहिनी यश, अनन्य भजन यश, श्री राधा प्रताप यश, मंगल सार यश और विमुख मुख भंजन यश। लेखक ने इनके कुछ पद भी देख हैं किन्तु स्वामी जी का उत्तम कृतित्व यशों में ही है। यशों में पौराणिक कथाओं और भक्त-चरित्रों के आधार पर प्रेमाभक्ति की सर्वश्रेष्ठता स्थापित की गई है। अधिकांश यशों में उद्धरणों की भरमार है, अत: स्वामी जी की प्रतिभा को अपना प्रकाश करने का अधिक अवकाश नहीं मिला है। श्री राधा प्रताप यश और मंगल सार यश में स्वामी जी का रचना कौशल प्रगट हुआ है। श्री राधा प्रताप यश का एक उद्धरण पृ.194 पर दिया जा चुका है। मंगल सार यश के कुछ छंद देखिये। लीला नेम पे्रेम पूरित घट, रट राधा कुन गावत हरि जू । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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