हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 306

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
स्वामी चतुर्भुजदास जी

स्वामी चतुर्भुजदास जी- सवेक जी के मिद्ध थे और गढ़ा के ही रहने वाले थे। श्री हिताचार्य के निकुंज गमन का समाचार सुनकर सेवक जी तो उनकी ही दीक्षा लेने का हठ लेकर वहीं रह गये और चतुर्भुजदास जी वृन्दावन चले गये और श्री बनचन्द्र गोस्वामी से दीक्षा लेली।

भजन-सम्पन्न होकर चतुर्भुजदास जी विमल रस-भक्ति के प्रचार में लग गये। उनके साथ अनेक रसिक संत और पंडित लोग रहते थे। उन्होंने अपने देश गौंडवाने के गाँव-गाँव घूमकर लोगों के जीवन में आमूल परिवर्तन कर दिया। मध्य प्रदेश के अपने स्थानों में वे गये और अनेक राजाओं को शिष्य बनाया।

चतुर्भुजदास जी बड़े निर्भय और निष्ठावान संत थे। इनके ‘द्वादश यश’ प्रकाशित हो चुके हैं। यशों के नाम हैं, शिक्षा सकल समाज यश, धर्म विचार-यश, प्रक्ति प्रताप यश, संत प्रताप यश, शिक्षा सार यश, हितोपदेश यश, पतित पावन यश, मोहिनी यश, अनन्य भजन यश, श्री राधा प्रताप यश, मंगल सार यश और विमुख मुख भंजन यश। लेखक ने इनके कुछ पद भी देख हैं किन्तु स्वामी जी का उत्तम कृतित्व यशों में ही है। यशों में पौराणिक कथाओं और भक्त-चरित्रों के आधार पर प्रेमाभक्ति की सर्वश्रेष्ठता स्थापित की गई है। अधिकांश यशों में उद्धरणों की भरमार है, अत: स्वामी जी की प्रतिभा को अपना प्रकाश करने का अधिक अवकाश नहीं मिला है। श्री राधा प्रताप यश और मंगल सार यश में स्वामी जी का रचना कौशल प्रगट हुआ है। श्री राधा प्रताप यश का एक उद्धरण पृ.194 पर दिया जा चुका है। मंगल सार यश के कुछ छंद देखिये।

लीला नेम पे्रेम पूरित घट, रट राधा कुन गावत हरि जू ।
क्रिया किशोर विहार सार सर, तन मज्जन जु करावत हरिजू ।।
तर्पन तद आनन्द अश्रु उर, कुश बरनिनु जु बहावत हरि जू ।
पुलकित रोम होत सुर नर मुनि, मोद महा सचु पावत हरि जू ।।
ये क्रम सन्त करत सन्तत अति, श्री हरिवंश बताये हरि जू ।
सुधा सार रस रीति जानि कैं, सब रसिकनि मन भाये हरि जू ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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