हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 304

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री कृष्णचंद्र गोस्वामी
पद

यह मति भली नहीं आपुन बढ़ि नर कूकर अनुसरिबौ ।
हरि सेवी जस गायक कौं लघु मानत नेंकु न डरिबौ ।।
अपने दोष निपट आँधे पर दोष कुतर्कनि जरिबौ ।
वृथा चातुरी वाद जनम तें भलौं गर्भ में गरिबौ ।।
खान पान ऐंड़ात भले जो वदन पसार न मरिबौ ।
(जैश्री) कृष्णा दास हित धरि विवेक चित साधुन संग उवरिबौ ।
(यह पद सूरदास जी के नाम से प्रचलित है।)

सेवक जी- इनका जन्म गोंड़वाने के गढ़ा[1] नामक ग्राम में ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनका नाम दामोदरदास जी था। रसिक संतों के मुख से श्री हिताचार्य की अद्भुत रसिकता का वर्णन सुनकर सेवक जी ने उनको गुरु-रूप में वरण कर लिया किन्तु गृहस्थ के झंझटों के कारण वृन्दावन जाकर उनसे दीक्षा न ले सके। उधर हित प्रभु का निकुंज-वास हो गया। इस समाचार से सेवक जी को अत्यन्त तीव्र विराहनुभव हुआ। उनकी अनन्य निष्ठा देख कर हित प्रभु ने उनको स्वप्न में मंत्र दान किया और वृन्दावन का रसमय वैभव उनको प्रत्यक्ष करा दिया। सेवक जी ने अपनी वाणी की रचना गढ़ा ही में की और उसको लेकर वृन्दावन गये। श्री बनचन्द्र गोस्वामी उस समय हित-गादी पर विराजमान थे। उन्होंने इनके आने पर श्री राधावल्लभ जी का प्रसादी भंडार लुटा दिया और सेवक वाणी के सम्बन्ध में यह नियम बना दिया कि- चौरासी अरु सेवक वानी, इक संग लिखत पढ़त सुखदानी ।

तब से हित चतुरासी और सेवक-वाणी साथ ही लिखती चली आई है और अभी तक इनके जितने छपे हुए संस्करण हुए हैं उनमें भी यह दोनों साथ ही छापी गई हैं। सेवक वाणी इस सम्प्रदाय का प्रधान प्रमाण ग्रन्थ है। सेवक वाणी में सेवक जी की अद्भुत निष्ठा प्रत्येक शब्द से टपकती है। ध्रुवदास जी ने भक्त नामावली में सेवक जी के सम्बन्ध में लिख है-


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह ग्राम जबलपुर से दो मील की दूरी पर है।

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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