श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री कृष्णचंद्र गोस्वामी
यह मति भली नहीं आपुन बढ़ि नर कूकर अनुसरिबौ । सेवक जी- इनका जन्म गोंड़वाने के गढ़ा[1] नामक ग्राम में ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनका नाम दामोदरदास जी था। रसिक संतों के मुख से श्री हिताचार्य की अद्भुत रसिकता का वर्णन सुनकर सेवक जी ने उनको गुरु-रूप में वरण कर लिया किन्तु गृहस्थ के झंझटों के कारण वृन्दावन जाकर उनसे दीक्षा न ले सके। उधर हित प्रभु का निकुंज-वास हो गया। इस समाचार से सेवक जी को अत्यन्त तीव्र विराहनुभव हुआ। उनकी अनन्य निष्ठा देख कर हित प्रभु ने उनको स्वप्न में मंत्र दान किया और वृन्दावन का रसमय वैभव उनको प्रत्यक्ष करा दिया। सेवक जी ने अपनी वाणी की रचना गढ़ा ही में की और उसको लेकर वृन्दावन गये। श्री बनचन्द्र गोस्वामी उस समय हित-गादी पर विराजमान थे। उन्होंने इनके आने पर श्री राधावल्लभ जी का प्रसादी भंडार लुटा दिया और सेवक वाणी के सम्बन्ध में यह नियम बना दिया कि- चौरासी अरु सेवक वानी, इक संग लिखत पढ़त सुखदानी । तब से हित चतुरासी और सेवक-वाणी साथ ही लिखती चली आई है और अभी तक इनके जितने छपे हुए संस्करण हुए हैं उनमें भी यह दोनों साथ ही छापी गई हैं। सेवक वाणी इस सम्प्रदाय का प्रधान प्रमाण ग्रन्थ है। सेवक वाणी में सेवक जी की अद्भुत निष्ठा प्रत्येक शब्द से टपकती है। ध्रुवदास जी ने भक्त नामावली में सेवक जी के सम्बन्ध में लिख है-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह ग्राम जबलपुर से दो मील की दूरी पर है।
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