हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 300

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
लालस्‍वामी जी
कुंडलिया

दीपति जोति प्रकाश परावधि स्‍याम गहीर उज्‍यारौ।
प्रेम अनंग तरंग प्रवीन नवीन सनेह बढ़ावन हारौ।।
के‍लि कलारस बेलि विंलबिन झेलि भरयौ सुख लाल पियारौ।
बानिक वेष निमेष रहयौ हिय हैरी कहूँ कल बाँसुरी वारौ।।
औतार अपार विचारु सकौं नहिं ब्रह्म विचरत बुद्धि सकेली।
नंद कुमार की लीला उदार कथा सत सिंधु सुधा सुख झेली।।
दान की मागनि कुंज क डोलनि रास विलास महारस केली।।
मो मन लंपट मोद मधुव्रत मादक दं‍पति की रति बेली।।
जोरि तोरि बहु जुगति बनावत बुनि उधेरि डाटत बहु डाट।
चितवन चिनत रचत मठ मंडप छिन में मेंटि करत उतपाट।।
मन मतंग विष बे‍लि विराजत औघट परत छाँड़ि घट घाट।
लाल प्रेम पद-पद्म बहिरमुख विहरत चित्त बहत्तर बाट।।


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः