हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 296

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
लालस्‍वामी जी

दरसैं परसैं रस में बरसैं अतिसै तरसैं न त्रिपित्त कराहीं।
पुंज भरे सुख सेज सरोजनि कुंज के आँगन आवत नाहीं।।
कहा तीरथ परवत-बन गाहन ऊपर चरन नारि तर लरकी।
कंकर कंट पाँइ पनही बिनु चूरन करी धूरि सब धरकी।।
परबी परब पुन्‍य करि गर्वित निबरत गिरत स्‍वर्ग गति नरकी।
लाल कृपाल प्रेम रस बंधन निर्भै भक्ति राधिका वर की।।

छप्‍पय
एक मेघ मनि मुकुर एक मृदु कनक कलेवर।
नग भूषन जगमगत अंग भुज दंड जुरे उर।।
रस मय मधुर किशोर जोर दरसन चि‍तवित हर।
दिनकर निकर अनंग चंद नाहिंन नख पटतर।।
बलि-बलि श्री हरिवंश हित जिन नाम सकल भव-भ्रम हरयौ।
जुग संगम कल कुंज बिच जिन बिखरत मन संपुट करयौ।।
जद्यपि दादुर नीरज के ढिंग तीर रहै न शरीर छुवावै।
राग करै अनुराग विना पुनि साग सलौंनौ अलौंनौंई भावै।।
रेत के खेत में खाँड़ खिपै ज्‍यौं दुरद्द तें दूरि पिपीलिका पावै।
श्री हरिवंश गुसाईं कृपा बिन हेत पदारथ हाथ न आवे।।


छप्‍पय
अक्षर तरल तरंग वेद विद्या बिनु पारहि।
सब्‍द-सिंधु गंभीर लहरि कहाँ लगि अवधारहि।।
चितवित हित हरिवंश विमल वृन्‍दावन रंजन।
कुंज धाम धन धूरि नित्त जमुना जल मंजन।।
श्री राधावल्‍लभ लाल पद सेवन गावन पठन रट।
तरक पंथ जिन भ्रमहि मन जो भल भाग ललाट पट।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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