हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 276

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


रसिक अनन्‍य हमारी जाति।
कुलदेवी राधा बरसानौं, खेरो, व्रज वासिनु सौ पाँति।।
गोत गुपाल जनेऊ माला शिखा शिखंड हरि-मंदिर भाल।
हरि गुन नाम वेद धुनि सुनियत मूंज पखावज कुश करताल।।
शाखा जमुना, हरि लीला, षट कर्म, प्रसाद प्रानधन रास।
सेवा विधि निषेध जड़ संगति वृत्ति सदा वृन्‍दावन वास।।
स्‍मृति भागवत कृष्‍ण नाम संध्‍या तर्पण गायत्री जाप।
वंशी रिषि जजमान कल्‍पतरु व्‍यास न देत अशीश-सराप।।

अब मैं वृन्‍दावन रस पायो।
राधा चरन शरण मन दीनौं मोहनलाल रिझायौ।।
सोयौ हुतौ विषय मंदिर में हित-गुरु टेर जगायौ।
अब तौ व्‍यास विहार विलोकित शुक नारद मुनि गायौ।।

जाके मन बसै श्री वृन्‍दावन।
सोई रसिक अनन्‍य धन्‍य जाकें हित राधा मोहन।।
ता हिय नित्‍य विहार फुरै बन लीला को अनुकरन।
विषय वासना नाहिन जाकै सुधरे अन्‍तह करन।।
लोक-वेद को भेद न जाकै श्री भागौत सो धन।
ताकैं व्‍यास रास रस वरषत बहि गई कामिनि कंचन।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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