हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 272

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


इसी प्रकार पावस-वर्णन के निम्‍नलिखित पद में व्‍यास जी ने, कतिपय शब्‍दों के साथ ‘सी’ और ‘से’ प्रत्‍ययों के योग के द्वारा साधारण वर्षा को प्रेम की वर्षा व्‍यंजित कर दिया है। पद में उमंग महीरुह से महि फूली मृग माला सी’ पंक्ति दर्शनीय है।

आजु कछु कुंजनि में बरसा सी।
बादल दल में देखि सखी री, चमकति है चपलासी।।
नान्‍ही-नान्‍ही बुंदनि धुरवा से, पवन बहै सुखरासी।
मन्‍द–मन्‍द गरजनि सी सुनियत, नाचति मोर सभा सी।।
इन्‍द्र धनुष में बग-पंकति, डोलति-बोलति कोकिला सी।
चन्‍द्र वधू छवि छाइ रही मानो, गिरि पर श्‍याम घटा सी।।
उमग महीरुह से महि फूली, भूली मृग माला सी।
रटत व्‍यास चातक की रसना, रस पीवत हू प्‍यासी।।

श्रीहित हरिवंश की भाँति व्‍यास जी ने भी सुरतान्‍त-छवि के वर्णन में अनेक पद कहे है। व्‍यास जी के उपलब्‍ध जीवन-वृत्तों से मालुम होता है कि वे सर्वथा निर्भय व्‍यक्ति थे और उन की निष्‍ठा पूर्ण सुदृढ़ थी। निष्‍ठावान भक्‍तों के उस युग में भी ध्रुवदास जी ने व्‍यास जी को, इस दृष्टि से, अद्वितीय बतलाया है।[1] उन्‍होंने श्रृंगार-रस का वर्णन हित प्रभु को अपेक्षा अधिक खुली रीति से किया है और उसे सब अंगो का कथन निस्‍संकोच होकर किया है। साथ ही उनके ऐसे भी पद मिलते है जिनमें अत्‍यन्‍त संयत ढंग से श्‍यामश्‍यामा की रहस्‍यमय केलि के प्रेम-सौंदर्य को संकेतित कर दिया गया है। एक पद देखिये-

वृन्‍दावन कुंज-कुंज केलि-बेलि फूली।
कुन्‍द-कुसुम, चंद, नलिन, विद्रुम छवि भूली।।
मधुकर, शुक, पिक, मराल, मृगज सानुकूली।
अदभत धन मंडल पर दामिनि सी भूली।।
व्‍यास दासि रंग रासि देखि देह भूली।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1.  कहनी-करनी करि गयौ एक व्‍यास इहिकाल।
    लोक-वेद तजि के भजे राधावल्‍लभ लाल।।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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