श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
आजु कछु कुंजनि में बरसा सी। श्रीहित हरिवंश की भाँति व्यास जी ने भी सुरतान्त-छवि के वर्णन में अनेक पद कहे है। व्यास जी के उपलब्ध जीवन-वृत्तों से मालुम होता है कि वे सर्वथा निर्भय व्यक्ति थे और उन की निष्ठा पूर्ण सुदृढ़ थी। निष्ठावान भक्तों के उस युग में भी ध्रुवदास जी ने व्यास जी को, इस दृष्टि से, अद्वितीय बतलाया है।[1] उन्होंने श्रृंगार-रस का वर्णन हित प्रभु को अपेक्षा अधिक खुली रीति से किया है और उसे सब अंगो का कथन निस्संकोच होकर किया है। साथ ही उनके ऐसे भी पद मिलते है जिनमें अत्यन्त संयत ढंग से श्यामश्यामा की रहस्यमय केलि के प्रेम-सौंदर्य को संकेतित कर दिया गया है। एक पद देखिये- वृन्दावन कुंज-कुंज केलि-बेलि फूली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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कहनी-करनी करि गयौ एक व्यास इहिकाल।
लोक-वेद तजि के भजे राधावल्लभ लाल।।
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